जनपद एटा मे अपर पुलिस अधीक्षक एटा द्वारा असीसी कान्वेंट स्कूल में आयोजित कल्चरल प्रोग्राम में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित रहें
जन नायक सम्राट ब्यूरो अलीगढ (अनिल कुमार )
जनपद एटा मे अपर पुलिस अधीक्षक एटा द्वारा असीसी कान्वेंट स्कूल में आयोजित कल्चरल प्रोग्राम में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित होकर स्कूल स्टाफ तथा आए हुए समस्त परिजनों को “आपरेशन जागृति” के तहत बताया कि वे बच्चों के साथ “क्या करें, क्या न करें।”*
*आपरेशन जागृति के तहत क्षेत्राधिकारी सदर द्वारा थाना पिलुआ क्षेत्र, क्षेत्राधिकारी नगर द्वारा थाना कोतवाली देहात क्षेत्र, क्षेत्राधिकारी जलेसर द्वारा थाना जलसेर क्षेत्र तथा जनपदीय पुलिस द्वारा अपने–अपने थाना क्षेत्रों में ऑपरेशन जागृति के तहत गोष्ठी आयोजित कर आमजन को किया गया जागरूक। आपरेशन जागृति को प्रत्येक बच्चे तक पहुंचाने के लिए निबंध, चित्रकला, वाद-विवाद आदि प्रतियोगिताओं का स्कूलों में आयोजन कराने की, की गई अपील।
एडीजी आगरा जोन आगरा महोदया के निर्देशन में महिलाओं एवं बालिकाओं के जागरूकता व स्वावलंबन एवं उनके प्रति होने वाले अपराधो में कमी लाने हेतु चलाए जा रहे “ऑपरेशन जागृति” अभियान के तहत आज दिनांक 15.12.2023 को जागरूकता अभियान के तहत समस्त थाना क्षेत्रों में भी गोष्ठी आयोजित कर, महिलाओं/ बालिकाओं/ छात्राओं एवं क्षेत्र के गणमान्य लोगों से संवाद स्थापित किया उनको जागरूक किया गया, साथ ही गोष्ठी में प्रतिभाग करने वाले लोगो से फीडबैक भी लिया गया।
अपर पुलिस अधीक्षक एटा द्वारा स्कूल स्टाफ तथा आए हुए समस्त परिजनों को “आपरेशन जागृति” के तहत बताया कि वे बच्चों के साथ “क्या करें, क्या ना करें”-
1. जरा-जरा सी बात पर डांटने से बचें-
उन्होंने कहा कि कई बार बच्चों पर छोटी-छोटी बातों पर चिल्लाना या उन्हें डांटना आपकी आदत बन जाती है। पढ़ाते या कुछ समझाते वक्त अगर बच्चे को कुछ समझ नहीं आ रहा है तो डांटने की बजाय उससे प्यास से डील करें, क्योंकि ऐसा करने से बच्चा सवाल पूछने से डरने लगेगा और आपका उस पर चिल्लाना उसे गुस्सैल बना सकता है।
2. हर बार इच्छी पूरी करना जरूरी नहीं- कभी-कभी बच्चों की मांग से पहले ही उनकी इच्छा पूरी करना उन्हें बिगाड़ सकता है। कई माता-पिता ऐसे होते हैं कि बच्चे कुछ भी मांगे, उससे पहले ही उन्हें लाकर सामान दे देते हैं। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि ये आदत बच्चों पर गलत प्रभाव डाल सकती है। इसलिए जब भी कुछ लाएं तो इस बार का ख्याल रहे कि बच्चे को उसकी जरुरत होनी चाहिए।
3. गैजेट्स की छूट देने से बचें-
आजकल मोबाइल-इंटरनेट के जमाने में बच्चे ज्यादातर वक्त स्मार्टफोन और गैजेट्स के साथ बिताने लगे हैं, ऐसे में उनकी आंखों और मेंटल हेल्थ पर असर पड़ता है। उनका विकास भी प्रभावित होता है, इसलिए बच्चों को गैजेट्स की छूट कम दें और मैदान में खेलने के लिए प्रोत्साहित करें।
4. नखरे को प्यार न समझें-
कई बार जब बच्चे जिद करते हैं तो माता-पिता उन्हें वह करने की छूट दे देते हैं, जो बच्चे करना चाहते हैं। इसलिए कभी भी ऐसी सिचुएशन आए तो बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए। उनके नखरे को कभी भी प्यार नहीं समझना चाहिए। अच्छी पैरेंटिगं के लिए भावनाओं पर काबू रखना जरूरी होता है।
इसके अलावा जनपद में जागरूकता अभियान के तहत की गई गोष्ठियों में महिलाओं/ बालिकाओं/छात्राओं एवं गणमान्य लोगों से संवाद स्थापित करते हुए बताया गया की विभिन्न माध्यम से जनसुनवाई में प्राप्त शिकायती प्रार्थना-पत्र एवं दैनिक अपराध आख्या से महिलाओं से संबंधित अपराधों की शिकायतें देखने को मिलती है। जहाँ एक ओर यह स्थिति महिलाओं एवं बालिकाओं के सशक्तिकरण और सुरक्षा को कम्प्रोमाइज करती है, वही अक्सर पारिवारिक विवाद / पारस्परिक भूमि विवाद का यथोचित समाधान नहीं दिखने पर अपराधिक घटनाओं में महिला सम्बन्धी अपराधों को जोड़ने की प्रवृत्ति भी सामाजिक रूप से देखने को मिल रही है। संक्षेप में कई अन्य प्रकरणों में ऐसी घटनायें दर्ज करा दी जाती हैं, जिनको बाद महिला एवं बालिकाओं संबन्धी अपराधों की श्रेणी में परिवर्तित कर दिया जाता है जबकि मूलतः यह पारिवारिक और भूमिविवाद संबन्धी होती है।
दूसरी ओर, वास्तविक रूप से महिलाओं एवं बालिकाओं के विरूद्ध जो अपराध होते हैं, उनमें दुष्कर्म, शीलभंग जैसे संगीन मामलों में प्रताड़ित महिलाओं एवं बालिकाओं की मनोस्थिति काफी हद तक प्रभावित होती है और पीड़िता के जीवन में उस घटना का ट्रॉमा और भय सदैव के लिए बस जाता है। उक्त मानसिक आघात से उभरने के लिए पीड़िता को मनोवैज्ञानिक परामर्श की भी आवश्यकता होती है।
एक अन्य प्रकार का ट्रेंड जो सामने आ रहा है, उसमें नाबालिग उम्र में बालिकायें लव अफेयर, Elopement, Live in relationship जैसे सेनेरियो में फँस जाती हैं और किन्ही कारणों से उनको समझौता करना पड़ता है। कई बार बालिकायें अपनी सहमति से भी बिना सोचे समझे चली जाती है। साथ ही साथ बदनामी के भय से ऐसा संत्रास झेलना पड़ता है, जिसके कारण वह ऐसी स्थिति से निकलने में अपने आपको अक्षम महसूस करती है। परिवार में आपसी संवादहीनता और अभिभावकों से डर के कारण बालिकाए अपनी बात कह नहीं पाती है। इसके अतिरिक्त आज तकनीक के दुरूपयोग के चलते महिलाओं एवं बालिकाओं के प्रति साइबर बुलिंग के मामले भी सामने आ रहे है। इन सभी परिस्थितियों में सामाजिक जागरूकता, संवाद शिक्षा और परामर्श (counselling/support) की बेहद आवश्यकता है ताकि महिलायें एवं बालिकायें इस प्रकार के षड़यंत्रों का शिकार न बने भावनाओं में बहकर अपना जीवन बर्बाद न करें, यदि उनके साथ किसी प्रकार का अपराध घटित होता है तो वह सच बोलने की हिम्मत रख पाये और विधिक कार्यवाही के साथ-साथ उनको counseling/support और rehabilitation का मौका मिल सके।