1 भाषाओं में गीत गाए मोहम्मद रफी की आवाज में गाए गाने हैं.
मौत हुई तो सामने आए दरियादिली के किस्से,आज 99वीं बर्थ एनिवर्सरी है.
आज मौसम बड़ा बेईमान है…., पुकारता चला हूं मैं…, गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं… किंग ऑफ मेलोडी यानी मोहम्मद रफी की आवाज में गाए गाने हैं. ये सभी गीत आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं. रफी उन गायकों में से एक हैं जिनका कोई दौर नहीं रहा बल्कि उनकी आवाज हर दौर में लोगों की पहली पसंद है.अमृतसर के पास कोटला सुल्तान में आज ही के दिन 1924 को जन्में मोहम्मद रफी की आज 99वीं बर्थ एनिवर्सरी है. आज से 43 साल पहले दुनिया को अलविदा कहने वाले रफी के निधन पर भारत सरकार ने दो दिनों का शोक रखा था. लोग इन्हें इतना पसंद करते थे कि इनके कब्र की मिट्टी खाते थे. उनके निधन की खबर सुनते ही उनके आवास पर 10 हजार फैंस इकट्ठे हो गए थे. हो भी क्यों ना? लाहौर में नाई की दुकान से संगीत की दुनिया के किंग बनने तक का सफर रफी ने अपनी गायकी के दम पर ही पूरा किया है. तो चलिए इस महान सिंगर के कुछ अनसुने और दिलचस्प किस्सों को विस्तार से पढ़ते हैं
भाई की नाई की दुकान पर फकीर का गीत सुनकर पीछे दौड़ पड़े रफी
मोहम्मद रफी जब सात साल के थे तभी उनका परिवार रोजगार की तलाश में अंग्रेजों के जमाने में लाहौर आ गया. रफी का जन्म पंजाबी जाट मुस्लिम फैमिली में हुआ था. ऐसे में उनके परिवार का नाच गाने से कोई संबंध नहीं था और पढ़ाई में रफी की कुछ खास दिलचस्पी थी नहीं. छह भाईयों में रफी दूसरे नंबर के थे. उनके बड़ा भाई नाई की दुकान चलता था.एक रोज उनके पिता ने रफी को भी नाई की दुकान पर काम करने के लिए लगा दिया. वो भी खुशी-खुशी भाई के साथ काम करवाने लगे, लेकिन कहते हैं न किस्मत का लिखा कोई नहीं मिटा सकता. रफी के साथ भी कुछ ऐसा ही था. एक रोज वो अपने भाई की दुकान में काम करवा रहे थे और उस दिन एक फकीर गीत गाता हुआ उनकी दुकान से निकला. रफी उसके पीछे दौड़ पड़े. फिर अक्सर वो फकीर उनकी दुकान से गीत गाता हुआ जाता और रोज रफी उसका गीत सुनने के लिए इंतजार करते.रफी उस फकीर से प्रेरित होकर गीत गुनगुनाया करते थे. उनकी आवाज में मानो शुरुआत से ही सरस्वती का वास था. गायकी के प्रति अपने छोटे भाई की रुचि देखते हुए रफी के बड़े भाई ने उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से संगीत की शिक्षा दिलवाई. एक रोज ऑल इंडिया रेडियो के एक कार्यक्रम में कुन्दन लाल सहगल को सुनने के लिए गए. उनके बड़े भाई भी उनके साथ थे. लेकिन जब सहगल अपना गीत सुनाने ही वाले थे उसी समय बिजली गुल हो गई. लिहाजा सहगल ने गाने से इंकार कर दिया. ऐसे में रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से लोगों का गुस्सा शांत करवाने के लिए रफी से गाना गवांने की गुजारिश की. आयोजक मान भी गए और इस तरह रफी ने 13 साल की उम्र में अपनी पहली पब्लिक परफार्मेंस दी.वहीं श्याम सुंदर भी मौजूद थे, जब उन्होंने रफी का गाना सुना तो वो बहुत खुश हुए और उन्होंने रफी को अपने लिए गाने का मौका दिया. मोहम्मद रफी की पहली रिकॉर्डिंग पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए थी और गीत था परदेसी….सोनिए ओ हीरिए. जो उन्होंने 1944 में गाया था. इसके बाद रफी ने साल 1946 में बम्बई आने का फैसला किया. जहां उन्हें जाने माने संगीतकार नौशाद के साथ फिल्म ‘पहले आप’ के लिए गाने का मौका मिला और ये गाना था ‘हिंदुस्तान के हम हैं’. इसके बाद मोहम्मद रफी कभी नहीं रुके और उन्होंने फैंस को उनकी आवाज में कई गाने दिए.
जब गाना गाते हुए गले से निकलने लगा था खून
मोहम्मद रफी के गले से एक बार गीत गाते हुए खून निकलने लगा था. नौशाद की बायोग्राफी नौशादनामा में मोहम्मद रफी के एक किस्से का जिक्र है. जिसमें बताया गया है कि फिल्म बैजू बाबरा के गीत ‘ओ दुनिया के रखवाले..’ की रिकॉर्डिंग हाई रिक्ले में होनी थी. इसके लिए मोहम्मद रफी बहुत दिनों से घंटों तक रियाज कर रहे थे. जब इस गीत की फाइनल रिकॉर्डिंग का दिन आया तो उनके गले से खून निकलते लगा. इसके महीनों बाद तक रफी साहब कोई गाना नहीं गा सके. हालांकि बाद में रफी ने इस गीत को गाया और पहले से भी ज्यादा हाई स्कैल पर इसकी रिकॉर्डिंग की.
ड्राइवर को काम से निकालने पर दे दी थी टैक्सी
मोहम्मद रफी को लग्जरी गाड़ियों का खासा शौक था. एक दफा उन्होंने अमेरिकी कार इंपाला खरीदी. ये कार राइट हैंड थी और भारत में बहुत ही कम लोग इसे खरीद पाए थे. वहीं रफी साहब के ड्राइवर को इस कार को चलाने का तरीका समझने में काफी परेशानी हो रही थी. लिहाजा उन्हें नया ड्राइवर ढूंढना पड़ा. लेकिन रफी नहीं चाहते थे कि इसकी वजह से उनके पुराने ड्राइवर की रोजी रोटी पर कोई खतरा हो, ऐसे में उन्होंने उसे 70 हजार रुपए में एक टैक्सी खरीदकर दी. आज रफी का वही ड्राइवर सुल्तान 12 टैक्सियों का मालिक है.
रफी साहब की दरियादिली को बताता एक और किस्सा है. हालांकि ये किस्सा उस वक्त सामने आया जब रफी साहब इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे. दरअसल हुआ यूं कि रफी साहब के निधन के बाद एक रोज एक फकीर उनके घर पहुंचा और उनसे मिलने की जिद करने लगा. रफी के घरवालों ने उस फकीर से इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि मोहम्मद रफी हर महीने उसका घर चलाने के लिए पैसे भेजा करते थे. रफी के सेक्रेटरी ने भी बाद में इस बात की पुष्टि की थी. इस बात का खुलासा उनकी मौत के बाद ही हो सका कि मोहम्मद रफी पैसे भेजकर कई लोगों का घर चला रहे थे.
जब रिकॉर्डिंग के वक्त फूट-फूटकर रोए थे रफी
मोहम्मद रफी एक दफा रिकॉर्डिंग के वक्त फूट-फूट कर रोने लगे. हुआ कुछ ऐसा था कि उन्हें गीत ‘बाबुल की दुआएं लेती जा…’ की रिकॉर्डिंग करनी थी. इसके रिकॉर्डिंग के एक दिन पहले ही उनकी बेटी की सगाई हुई थी और कुछ दिन बाद ही उसकी शादी थी. रफी अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे. जो इस गीत की रिकॉर्डिंग के वक्त भी नजर आया और गीत गाते हुए ही वो रोने लगे. रफी ने बाद में इस गाने को अपनी बेटी को डेडिकेट किया और इसके लिए फीस लेने से भी इंकार कर दिया.
शम्मी कपूर के लिए गाए सबसे ज्यादा गीत
मोहम्मद रफी ने सबसे ज्यादा अपनी आवाज शम्मी कपूर पर फिल्माए गानों को दी है. उन्होंने शम्मी कपूर के लिए लगभग 190 गाने गाए हैं. तो वहीं जॉनी वाकर के लिए 129, शशि कपूर के लिए 100, देवानंद के लिए 77 और दिलीप कुमार के लिए उन्होंने 47 गाने गाए हैं.
मोहम्मद रफी ने अपनी जिंदगी में लगभग 10 हजार गीतों को अपनी आवाज दी है. उन्होंने सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि इंग्लिश, बंगाली, पंजाबी, डच, स्पेनिश, मराठी और पारसी जैसी लगभग 11 भाषाओं में गीत गाए हैं.