जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने रबी फसलों में लगने वाले कीट एवं रोगों के प्रभावी नियंत्रण की दी जानकारी
अलीगढ़ जिला कृषि रक्षा अधिकारी अमित जायसवाल ने किसान भाईयों को सूचित किया है कि वर्तमान में तापमान में गिरावट एवं आर्द्रता वृद्धि के कारण रबी फसलों में लगने वाले सामयिक कीट, रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ गयी है। उन्होंने इन रोगों से बचाव एवं प्रबन्धन के लिए कृषकों को जागरूक करते हुए फसलवार सुझाव एवं संस्तुतियों की जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि गेंहू की फसल में दीमक, गुजिया के नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफ़ॉस 20 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए। माहू कीट के जैविक नियंत्रण के लिए एजाडिरेक्टिन 0.15 ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी मेंघोल कर छिडकाव करना चाहिए। इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए डाईमेथोयेट 30 प्रतिशत ईसी अथवा ऑक्सीडेमेटान-मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी 1.0 लीटर मात्रा अथवा थायोमेथाक्साम 25 प्रतिशत डब्लूजी लगभग 750 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए।
पीली गेरुई के नियंत्रण के लिए प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 500 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए थायोफिनेट मिथायल 70 प्रतिशत डब्लूपी 700 ग्राम अथवा मेन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्लूपी 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। मक्का की फसल में तना बेधक कीट का 10 प्रतिशत मृतगोभ का आर्थिक क्षति स्तर का प्रकोप दिखाई देने पर डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी अथवा क्लोरेन्ट्रनिलिप्रोल 200 मिली लीटर अथवा इन्डोक्साकार्ब 500 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। फाल आर्मी वर्म कीट के प्रकोप से बचाव के लिए 20-25 पक्षी आश्रय (बर्ड पर्चर) एवं 3-4 को संख्या में लाइट ट्रैप लगाकर आसानी से प्रबन्धन किया जा सकता है। फेरोमोन ट्रैप 35-40 प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर भी इसका नियंत्रण किया जा सकता है। 10-20 प्रतिशत क्षति की अवस्था में रासायनिक नियंत्रण प्रभावी होता है, इसके लिए क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एससी 0.4 मिलीलीटर अथवा इमामेक्टिन बेंजोइट 0.4 ग्राम अथवा थायामेथोक्साम 12.6 प्रतिशत $ लैम्ब्डासाईहेलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत 0.5 प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।उन्होंने बताया कि सरसों या राई में आरा मक्खी एक सूड़ी प्रति पौधा एवं बालदार सूडी 10-15 प्रतिशत प्रकोपित पत्तियाँ दिखाई देने पर आर्थिक क्षति स्तर मानते हुए मैलाथियान 50 प्रतिशत ईसी की 1.5 लीटर अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी की 1.25 लीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पत्ती सुरंगक (लीफ माइनर ) के जैविक नियंत्रण के लिए एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए ऑक्सीडिमेटॉन – मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी की 1 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 600-750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजब 75 प्रतिशत डब्लूपी अथवा जिनेब 75 प्रतिशत की 2.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। तुलासिता रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजब 75 प्रतिशत डब्लूपी अथवा जिनेब 75 प्रतिशत की 2.0 किलोग्राम अथवा कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लूपी की 3.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। सफेद गेरुई रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजब 75 प्रतिशत डब्लूपी अथवा जिनेब 75 प्रतिशत की 2.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।श्री जायसवाल ने चना, मटर एवं मसूर में होने वाले सेमीलूपर रोग के नियंत्रण की जानकारी देते हुए बताया कि इसके लिए 50-60 बर्ड पर्चर प्रति हेक्टेयर की दर से लगाना चाहिए, जिस पर चिड़िया बैठकर सूड़ियों को खा सके। कीट के जैविक नियंत्रण के लिए बैसिलस थ्यूरिजियेनसिस (बीटी) की कर्रट की प्रजाति 1.0 किलोग्राम अथवा एजाडिरैक्टिन 0.03 प्रतिशत डब्लूएस की 2.5-5.0 किलोग्राम 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी 2.0 लीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। एस्कोकाईटा ब्लाईट चने की फसल में पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजब 75 प्रतिशत डब्लूपी की 2.0 किलोग्राम अथवा कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लूपी की 3.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।उन्होंने बताया कि आलू की फसल में जब तापमान 10-20 सेंटीग्रेट के मध्य एवं आर्द्रता 80 प्रतिशत से अधिक होती है तो पछेती झुलसा रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है। इससे बचाव के लिए तत्काल सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। प्रकोप के लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लूपी अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लूपी 1.5-2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। गन्ना की फसल में टॉप बोरर (चोटी बेधक) कीट के प्रकोप की स्थिति मे ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 50000-60000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से 3 बार प्रयोग करना चाहिये। टीएसबी ल्योर 6-8 प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रयोग कर चोटी बेधक कीट का नियंत्रण किया जा सकता है। रासायनिक नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।