ताइवान में शनिवार को चुनाव है. इससे पहले आइए जानते हैं कौन-कौन चुनावी मैदान में हैं
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ताइवान में शनिवार को राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव है. इस चुनाव को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है. भारत से अमेरिका तक इस चुनाव की चर्चा है. हालांकि इस चुनाव पर पड़ोसी चीन की सबसे पैनी नजर है. दरअसल चीन ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताता है. वहीं दूसरी तरफ ताइवान की सरकार बीजिंग के संप्रभुता के दावों को खारिज करती आई है और इसलिए दोनों देशों के बीच टकराऊ की स्थिति बनी रहती है.ताइवान 1987 तक मार्शल लॉ के अधीन रहा. इस देश में 1996 तक प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति चुनाव नहीं हुआ. हालांकि दशकों के संघर्ष के बाद ताइवान में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हुई. ताइवान की चुनाव प्रणाली के बारे में कुछ बातें हैं जो आपको जाननी चाहिए साथ ही हम आपको बताएंगे क्यों ये देश अमेरिका, जापान जैसे देशों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.ताइवान में चुनाव लड़ने वाली तीन मुख्य पार्टियां हैं. सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी), कुओमितांग (केएमटी) और ताइवान पीपुल्स पार्टी (टीपीपी) जिसकी स्थापना 2019 में ही हुई थी.डीपीपी वर्तमान में 63 सीटों के साथ संसद में बहुमत में है. केएमटी के पास 38 सीटें हैं और टीपीपी के पास पांच सीटें हैं.
क्या है डीपीपी का स्टेंड
डीपीपी ताइवान की चीन से अलग पहचान का समर्थन करती है और बीजिंग के संप्रभुता के दावों को खारिज करती है. उसका साफ कहना है कि केवल ताइवान के लोग ही अपना भविष्य तय कर सकते हैं.
केएमटी का स्टेंड क्या हैकेएमटी वो पार्टी है जिसकी 1949 में कम्युनिस्टों के साथ गृह युद्ध हारने के बाद ताइवान भागने से पहले चीन में सरकार थी. यह पार्टी चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों का पक्षधर है लेकिन खुद के बीजिंग समर्थक होने से इनकार करता है. केएमटी इस रुख का समर्थन करता है कि ताइवान और चीन एक ही चीन के हिस्से हैं.
टीटीपी का स्टेंडटीपीपी भी चीन के साथ फिर से जुड़ना चाहती है. कई अन्य छोटे दल, जैसे स्वतंत्रता-समर्थक ताइवान स्टेटबिल्डिंग पार्टी और खुले तौर पर चीन-समर्थक न्यू पार्टी, भी संसदीय चुनावों में उम्मीदवार खड़े कर रही हैं लेकिन अधिकांश को बहुत अधिक या कोई सीटें मिलने की संभावना नहीं है.
कौन-कौन हैं राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार राष्ट्रपति पद के लिए तीन लोग चुनाव लड़ रहे हैं. डीपीपी पार्टी से वर्तमान उपराष्ट्रपति लाई चिंग-ते, केएमटी से न्यू ताइपे शहर के मेयर होउ यू-इह, और टीपीपी पार्टी से ताइपे के पूर्व मेयर को वेन-जे राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार हैं.
कितने साल का होगा कार्यकाल नए राष्ट्रपति 20 मई को पदभार ग्रहण करेंगे. राष्ट्रपति का कार्यकाल चार वर्ष का होता है और एक राष्ट्रपति लगातार अधिकतम दो कार्यकाल तक कार्य कर सकता है. ताइवान का राष्ट्रपति सेना का कमांडर-इन-चीफ होता है, प्रधान मंत्री की नियुक्ति करता है, जो फिर एक कैबिनेट बनाता है.
कितने बजे शुरू होगी वोटिंग, कब आएंगे नतीजे मतदान केंद्र सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक खुले रहेंगे. मीडिया शाम तक रुझानों के आधार पर बता देगी कि सरकार किसकी बन रही है. केंद्रीय चुनाव आयोग आधिकारिक नतीजों की घोषणा काफी देर बाद रात को करेगा.
क्यों भड़का है चीन चीन ताइवान के राष्ट्रपति साई इंग-वेन के ताइवान की संप्रभु स्थिति को बचाने की कोशिशों से भड़का हुआ है. चीन ने कहा कि ताइवान ने ‘वन चाइना’ सिद्धांत को मानने से इनकार कर दिया, जो उसे मंजूर नहीं है. चीन का मानना है कि ताइवान उसका एक अभिन्न अंग है और एक दिन उसका चीन में विलय तय है.वैसे तो दोनों मुल्कों के बीच तनाव की स्थिति हमेशा रही है लेकिन साल 2022 में तत्कालीन अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन ने लगातार ताइवान पर दवाब बनाया.
ताइवान चीन के बीच तनाव का टाइमलाइन बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ताइवान को एक आजाद मुल्क नहीं मानता है. सिर्फ 12 ऐसे देश हैं, जो उसे देश की मान्यता देते हैं. चीन के साथ ताइवान के रिश्तों में खटास का इतिहास पुराना है. 1945 से 1949 के दौर में चीन एक गंभीर गृहयुद्ध से गुजरा. इस युद्ध में टकराऊ माओत्से तुंग की अगुवाई वाले कम्युनिस्टों और च्याई कांग शेक की अगुवाई वाले राष्ट्रवादी नेताओं के बीच थी.च्याई कांग शेक कमजोर पड़े और भागकर ताइवान वाले इलाके में चले गए. वहां उन्होंने निर्वासन में रहते हुए एक सरकार गठित की. तबसे ही चीन और ताइवान के बीच संघर्ष जारी है.चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बार-बार कहा है कि जरूरत पड़ने पर चीनी सेना के जरिए ताइवान पर कब्जा करने के लिए तैयार है. हालांकि इस वक्त चीन कोविड के बाद से अपनी अर्थव्यवस्था को संकट से नहीं निकाल पाया है, और ऐसे में वो युद्ध की स्थित में नहीं जाना चाहेगा.
क्या है वन चाइना पॉलिसी वन चाइना पॉलिसी चीन सरकार की नीति है, जिसमें ये कहा गया है कि चीन एक ही देश है. ताइवान अलग नहीं है बल्कि चीन देश की ही हिस्सा है. यह नीति 1949 में अस्तित्व में आई. भारत ने वन चाइना पॉलिसी को 1949 तो अमेरिका ने 1979 में इसे मान्यता दी.
अगर युद्ध हुआ तो अमेरिका किसके साथ अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका किसका साथ देगा ये बड़ा सवाल है. हाल के दिनों में अमेरिका और चीन ने आपसी संबंध मजबूत करने के लिए कई मुलाकतें की हैं. हालांकि चीन और ताइवान के बीच किसी भी तनाव का बड़ा और खतरनाक हो जाने का जोखिम है. इस क्षेत्र में अमेरिकी नौसेना की बड़ी मौजूदगी है. दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया से लेकर उत्तर में जापान तक उसके अड्डे हैं.अमेरिका की तरह अगर इस क्षेत्र में युद्ध की स्थिति होती है तो जापान क्या करेगा ये भी सवाल है. दरअसल अमेरिका के सैनिकों की मेजबानी करने वाला जापान ही है.
ताईवान हर देश के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ताइवान भौगोलिक दृष्टि से बेहद महत्वूर्ण देश है. दुनिया के करीब आधे कंटेनर जहाज हर साल ताइवान जलडमरूमध्य से होकर ही गुजरते हैं. यह इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाता है. दुनिया का अधिकांश सेमीकंडक्टर भी ताइवान ही बनाता है. ये सेमीकंडक्टर कारों और रेफ्रिजरेटर से लेकर फोन तक को आधुनिक बनाते हैं. इसमें कोई भी व्यवधान अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन को पंगु बना देगा.अगर मान लीजिए युद्ध जैसी स्थिति बनती है और अमेरिका समेत दूसरे बड़े देश चीन के व्यापार में व्यवधान डालते हैं. उसपर किसी तरह का प्रतिबंध लगाते हैं तो इससे वैश्विक व्यापार में 2.6 ट्रिलियन डॉलर या विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3 फीसदी के बराबर का नुकसान होने का अनुमान है.