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कलकत्ता हाईकोर्ट में जजों के बीच चल रही टकराहट का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया
सुप्रीम कोर्ट इसी मामले की सुनवाई आज सुबह 10:30 बजे से करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 जनवरी) को इस मामले में खुद संज्ञान लिया. अब भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस की सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी.जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय की अगुवाई वाली सिंगल बेंच ने डबल बेंच के आदेश की अनदेखी करते डबल बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस सौमेन सेन पर एक राजनीतिक दल के लिए काम करने का आरोप लगाया था. सुप्रीम कोर्ट इसी मामले की सुनवाई आज यानी शनिवार (27 जनवरी) को सुबह 10:30 बजे से करेगी. इन सबके बीच लोगों के मन में ये सवाल आ रहा होगा कि आखिर पूरा विवाद है क्या. आइए डालते हैं इस विवाद पर एक नजर.
क्या है जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय बनाम जस्टिस सौमेन सेन मामला?
- लाइव लॉ के मुताबिक, पिछले दिनों कलकत्ता हाईकोर्ट में एक याचिका आई, जिसमें कहा गया था कि पश्चिमी बंगाल में फर्जीवाड़ा कर जाति प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं. इन जाति प्रमाण पत्रों का इस्तेमाल कर मेडिकल पाठ्यक्रमों में बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया है. इस याचिका पर 24 जनवरी (बुधवार) की सुबह जस्टिस गंगोपाध्याय की सिंगल बेंच ने पश्चिम बंगाल पुलिस को आदेश दिया कि वह इस मामले से संबंधित सभी डॉक्युमेंट्स सीबीआई को सौंप दे और सीबीआई इस पूरे मामले की जांच करे. उन्होंने कहा था कि उन्हें राज्य पुलिस पर कोई भरोसा नहीं है.
- इस आदेश के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ का रुख किया. इसके बाद न्यायमूर्ति सौमेन सेन और उदय कुमार की खंडपीठ ने मामले की सीबीआई जांच के एकल पीठ के आदेश पर रोक लगा दी.
- गुरुवार को न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की सिंगल बेंच ने कहा कि खंडपीठ की ओर से पारित आदेश पूरी तरह से अवैध है और इसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए.
- न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने एडवोकेट जनरल से पूछा कि कौन सा नियम एक डबल बेंच को सिंगल बेंच के आदेश पर रोक लगाने की अनुमति देता है. उन्होंने कहा कि जब इस मामले में अपील का कोई आवेदन नहीं था तो आदेश कैसे पारित किया जा सकता है.
- यही नहीं, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने अपने आदेश में खंडपीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति सेन पर राज्य में एक राजनीतिक दल के लिए काम करने का आरोप लगाया और कहा कि इसी वजह से न्यायमूर्ति सेन के नेतृत्व वाली पीठ की ओर से पारित आदेशों पर दोबारा गौर करने की जरूरत है.