जो स्थान अंग्रेजी में स्प्रिंग (Spring) का है, वही स्थान हमारे यहां वसंत का है
रंगबिरंगे पोशाक पहने अपने चरम सौन्दर्य को प्राप्त होती है और इसी ऋतु में आती है बसंत पंचमी.
व्रत चंद्रिका उत्सव अध्याय क्रमांक 36 के अनुसार, बसंत पंचमी का त्योहार माघ शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है. हमारे, अन्य त्योहार किसी देवता की जन्मतिथि के उपलक्ष में मनाए जाते हैं अथवा किसी देवी घटना विशेष के कारण से परन्तु इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक सामाजिक त्योहार है. इसका सम्बन्ध न तो किसी देवता के जन्म-दिवस से है और न अन्य किसी घटना विशेष से. यह त्योहार वसंत–ऋतु के शुभ आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा माना गया है. जिस प्रकार राजा के आगमन के अवसर पर बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है उसी प्रकार इस ऋतुओं के राजा के आने पर उत्सव मनाया जाना स्वाभाविक ही हैं.शास्त्रीय स्वरूप हेमाद्रि में लिखा है कि, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हरि का पूजन करना चाहिए. इस दिन तेल लगाकर स्नान करके आभूषण और वस्त्रों को धारण करें तथा नित्य और नैमित्तिक कार्यों को करके श्रीविष्णु भगवान का प्रधानतया गुलाल से तथा सामान्य रीति से गन्ध, पुष्प, दीप, धूप तथा नैवेद्य से विधिवत् पूजा करें. इसके बाद स्त्री या पुरुष को पितृदेवों का तर्पण करनबंसत पंचमी को जिसका दूसरा नाम श्रीपंचमी भी है, सरस्वती देवी की जो वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं उनकी भी पूजा होती हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है
“माघ मासि सिते पक्षे, पञ्चम्यां पूजयेद्ध रिम् । पूर्वविद्धा प्रकर्तभ्या, वसन्तादौ तथैव च ॥ २ तैलाभ्यङ्गं ततः कृत्वा, भूषणानि च धारयेत् । नित्यं नैमित्तिकं कृत्वा, गुलालेनार्घषेद्ध रिम् ॥ ३ नारी नरो वा राजेन्द्र ! सन्तये पितृदेवताः । स्त्रचन्दनसमायुक्तो, ब्राह्मणान् भोजयेत्ततः॥ अर्थ:– श्रीकृष्ण ने सरस्वती के ऊपर अति प्रसन्न होकर कहा कि हे सुन्दरी! हमारे वरदान से माघ शुक्ल पंचमी के दिन तथा विद्यारम्भ के दिन संसार में मनुष्यगण, मनु आदि चौदह मनु, इन्द्रादिक सब देवता, बड़े बड़े मुनीन्द्र तथा मुक्ति की इच्छा करने वाले सन्त, सिद्ध लोग, नाग, गन्धर्व और किन्नर ये सब लोग प्रसन्नता से प्रत्येक कल्प में आपकी यथाविधि पजा करेंगे.
बसंत पचंमी पर पूजन कैसे करें?
भगवती सरस्वती की पूजा नीचे लिखे हुए प्रकार से करनी चाहिए. बंसंत पंचमी के एक दिन पहले नियम पूर्वक रहें. दूसरे दिन संयम पूर्वक प्रातःकाल स्नान कर सन्ध्या, तर्पण, आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर भक्तिपूर्वक कलश स्थापन करें. पहले गणेश, सूर्य, विष्णु, शंकर आदि की नैवेद्य, धूप, टीप आदि से पूजा करके बाद में अभीष्ट फल को देनेवाली सरस्वती की पूजा करें.सरस्वती की पूजा करके बसंत पंचमी का त्यौहार वसंत के आगमन के उत्सव में मनाया जाता है. आज ही के दिन पहले-पहल गुलाल उड़ायी जाती है. सब लोग गुलाल उड़ाते हैं और बसंती रंग में रंगे हुए वर्तमान स्वरूप वस्त्र को धारण करते हैं. कई जगहों पर आज के दिन से ही फाग या होली गाने का प्रारम्भ किया जाता है. आज से लेकर फागुन पूर्णिमा तक होली बड़ी मस्ती से गायी जाती है और लोग आनन्द उठाते हैं.किसान लोग अपने खेत से गेहूं तथा जौ की नमी बालि (अन्न) को घर लाते हैं और उसमें घी तथा गुड़ मिलाकर अग्नि में हवन करते हैं. हमारे यहां किसी नये अन्न या फल को ग्रहण करने के पूर्व उसे किसी अच्छी तिथि को देवता या अग्नि को अर्पण कर खाते हैं. बिना देवता को चढ़ाए खाना निषिद्ध माना जाता है. अतः आज के दिन नए जौ और गेहूं को अग्नि में हवन कर बाद में उसे व्यवहार में लाने लगते हैं. बसंत पंचमी का यही लौकिक स्वरूप है.बसंत पंचमी का त्योहार हमारा सामाजिक त्योहार (Social Festival) है. यह हमारे उस आनन्दातिरेक का प्रतीक है जिसे हम ऋतुराज वसंत के नाम से जानते हैं. वसंत के आगमन पर अपने हृदय में अनुभव करते हैं. यह हमारे हार्दिक उल्लास की प्रतिमूर्ति हैं. वसंत ऋतुओं का राजा कहलाता है, क्योंकि इस समय पतझड़ के कारण पत्तों से हीन पेड़ों में नये नये कोमल पत्ते निकल आते हैं. जंगल में पलाश के वृक्षों पर लाल लाल नये पुष्प मन को अपनी ओर बरबस खींच लेते हैं. रंग-विरंग के फूलों को देख कर हृदय हर्षित हो जाता है. कोयल की कूक कानों में अमृत उड़ेलने लगती हैं.आम के वृक्ष नयी मंजरी से सुशोभित हो जाते हैं.पराग पान करने के लिये फूलों पर बैठे हुये भौंरों की मीठी तथा मधुर भिनभिनाहट मन को चुरा लेती हैं. जोरों से बहती हुई पुरवैया हवा धूल उड़ाती हुई प्रकृति से मानों अठखेलियों करने लगती हैं. हरे-हरे खेतों में सरसों के पीले पीले फूलों को देख हृदय फूला नहीं समाता. जिधर देखिये उधर ही नया रंग और नया समां दिखाई पड़ता हैं. लोगों के हृदय में एक विचित्र प्रकार की मस्ती छाई रहती है. इस प्रकार प्रकृति में मनोहरता लानेवाले तथा हृदय में आनन्द उपजाने वाले वसन्त के आगमन का उत्सव मनाना स्वाभाविक ही है. यही वसंत पंचमी के उत्सव का महत्व है.
बसंत पचंमी से जुड़े एक पक्ष पर दृष्टी डालते हैं जब लोग माता सरस्वती और ब्रह्म जी को पिता पुत्री मानते हैं :–
स्वामी निग्रहाचार्य अनुसार कई सरस्वती हुईं हैं :–
1) नील सरस्वती – तारा देवी को नील सरस्वती कहतें हैं.
2) अनिरुद्ध सरस्वती – तंत्र उपासना के लिए प्रख्यात हैं.
3) महासरस्वती – जगत जननी ही महासरस्वती हैं.
4) ब्राह्मी सरस्वती – ब्रह्म देव की पत्नी.
5) ब्रह्मयोनी सरस्वती – ब्रह्म देव की पुत्री.
6) भरती सरस्वती – भारतवर्ष में अपनी एक कला से पधारकर नदीरूप में प्रकट हुई उन्हें भारतीय भी कहा गया (ब्रह्मा वैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 6).
इससे स्पष्ट होता हैं कि देवी आदि शक्ति के अनेक रूप और माया हैं और वही प्रकृति भी है.