डॉ. अस्थाना अजीब सी हंसी हंसते हुए जब पहली बार दिखे तो दर्शकों को ये पता चल गया कि बॉलीवुड में एक और गजब की एंट्री
मुन्ना भाई एमबीबीएस में मु्न्ना भाई और सर्किट के रोल्स की जितनी चर्चाएं हुईं उतनी ही चर्चाएं अकेले डॉ. अस्थाना का रोल
डॉ. अस्थाना अजीब सी हंसी हंसते हुए जब पहली बार दिखे तो दर्शकों को ये पता चल गया कि बॉलीवुड में एक और गजब की एंट्री हो चुकी है. मुन्ना भाई एमबीबीएस में मु्न्ना भाई और सर्किट के रोल्स की जितनी चर्चाएं हुईं उतनी ही चर्चाएं अकेले डॉ. अस्थाना का रोल निभाने वाले बोमन ईरानी की भी हुईं. ऐसा शायद बॉलीवुड में उसके पहले कुछ ही बार हुआ है. जब किसी एक्टर ने लेट एंट्री ली हो. इसके बावजूद उसकी पहचान इंडस्ट्री के बेहतरीन कलाकारों में होने लगी हो.ऐसे उदाहरणों में अमरीश पुरी के नाम के बाद बोमन ईरानी का नाम याद आता है. इन दोनों की खास बात ये रही कि ये जब फिल्मों में आए तब ये दूसरे अभिनेताओं की तरह 20s में नहीं, बल्कि 40s में थे. साल 1959 में जन्में बोमन जब पहली बार पर्दे पर दिखे तब उनकी उम्र 44 साल थी. बोमन की जर्नी आसान नहीं थी. लेकिन रुपये कमाने के पीछे लगने वाली मशक्कत से जूझते बोमन ने थकने से मना कर दिया. उन्होंने खुद को फिर ऐसा तैयार किया. डॉ. अस्थाना के रोल से लेकर ‘डॉन’ के जालिम पुलिस कमिश्नर के रोल तक. खोसला का घोसला के घर हड़पने वाले कैरेक्टर से लेकर लगे रहो मुन्नाभाई के लकी और 3 इडियट्स के वायरस वाले रोल तक हर बार खुद को साबित करने वाले बोमन ईरानी की जिंदगी पूरी की पूरी मोटिवेशनल किताब है.
47 साल की उम्र तक मेरे पास घर नहीं था’
पिछले साल बोमन ने जिस्ट को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि 47 साल की उम्र तक उनके पास घर तक नहीं था. जहां युवाओं के मन में ये बात घर करके उन्हें खोखला करने लग जाती है कि उनके पास 30 से 40 की उम्र के बीच एक घर जरूर होना चाहिए. वहीं देश के सबसे अच्छे एक्टर में से एक के पास 47 की उम्र तक घर ही नहीं था.
जिंदगी कठिन है तो खुद के लिए कठोर हो जाएं
बोमन ईरानी की ये खासियत उन्हें युवाओं के बीच हीरो की तरह पेश करती है. जिस्ट के पॉडकास्ट में उन्होंने बताया था, ”लाइफ और बचपन दोनों कठिन हो सकते हैं. लेकिन जब आपको सब कुछ आसानी से न मिलकर परेशानियों का सामना करने के बाद मिले, तो जो कुछ भी मिलता है उसका स्वाद आता है. सोचिए मैं 47 की उम्र में जिस बिल्डिंग में रहता था उसकी छत टूटी हुई थी, मरम्मत करानी पड़ी थी. तारे तक दिखते थे. मेरे पास तब तक घर ही नहीं था.”
घी और आलू की तरह महका करता था मैं
इसी इंटरव्यू के दौरान बोमन ईरानी ने बताया था कि उन्होंने 14 साल तक एक शॉपकीपर का काम किया. उन्होंने बताया कि मुझसे घी और आलू की महक आया करती थी. ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे में साल 2022 में बोमन ने अपने बचपन और अपनी जिंदगी के बारे में बहुत कुछ लिखा था. उन्होंने बताया था कि उनके पैदा होने से पहले ही पिता का निधन हो गया था. मां को उन्हें और उनकी बहनों को पालने के लिए घर वाली वेफर की दुकान चलानी पड़ी.बोमन ने यहां ये भी बताया था कि उनकी मां का एक्सीडेंट होने के बाद उन्हें उसी दुकान में बैठना पड़ा और ऐसा करते-करते 14 साल कब बीत गए पता भी नहीं चला. हालांकि, दुकान में बैठने से पहले बोमन ने होटल ताज में भी नौकरी की थी. और इन सबके साथ-साथ बोमन पढ़ाई भी करते रहे और थिएटर भी.
फैसलों की टाइमिंग में गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए
ये बात बहुत अहम है कि कब कौन सा फैसला लिया जा रहा है. बोमन ईरानी फिल्मों में लेट आए, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो उसके पहले फिल्मों में आ नहीं सकते थे. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बोमन ने कहा था, ”मैं मानता हूं कि मैं देर से आया हूं, लेकिन ये टाइमिंग बिल्कुल सही है. जैसा कि आप लोग मुझे स्क्रीन एक्टर मानते हैं. यही काफी है. मैं 15 सालों से थिएटर कर रहा हूं. लेकिन तभी आ गया होता तो सुपरफ्लॉप हीरो बनकर कहीं खो जाता.”
शुरुआत हुई 2 लाख से आज करोड़ों के हैं मालिक
ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे में ही उन्होंने बताया था कि वो एक फोटोग्राफर भी थे और उनके एक दोस्त के कहने पर उन्होंने जब कोशिशें शुरू कीं, तो उन्हें एक ऐड मिला और उसके बाद उन्हें कई ऐड और कुछ शॉर्ट फिल्म्स मिलती चली गईं. इस दौरान बोमन ने 180 ऐड किए. बोमन की एक शॉर्ट फिल्म विधु विनोद चोपड़ा को दिख गई. इसके बाद बोमन की जिंदगी बदल गई. विधु ने उन्हें बुलाकर उनको 2 लाख का चेक देते हुए कहा कि मैं तुम्हें ये अमाउंट मेरी अगली फिल्म में काम करने के लिए दे रहा हूं. जब तक फिल्म की शूटिंग नहीं शुरू हो गई तब तक बोमन को नहीं पता था कि वो मुन्ना भाई के साथ ‘मामू-मामू’ खेलने वाले हैं.हाल में ही बोमन की डंकी आई थी. इस फिल्म में भी उन्हें अपने रोल में बिल्कुल वैसे ही घुसकर अलग लेवल पर ले जाते देखा गया जैसे वो पहले अपने बाकी किरदारों के साथ करते रहे हैं. बोमन ने ताज होटल में प्रमोशन पाए थे. ठीक-ठाक पैसे मिलते थे. उसके बाद जब वो वेफर की घर वाली दुकान में बैठे तब भी उनके पास मिडिल क्लास वाली लाइफ वाली जिंदगी थी. मतलब ये कि मशक्कत करने की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं थी. लेकिन उन्होंने उस उम्र में खुद को हीरो की तरह पेश कर दिया जिस उम्र में ज्यादातर लोग उम्र का बहाना देकर आरामपसंद होने लग जाते हैं. आज मंडे के दिन ये कुछ खास बातें आप भी बोमन से सीख सकते हैं और सीख सकते हैं कि लाइफ में आगे बढ़ने के लिए ‘स्मार्ट जरूरत’ कितनी जरूरी है.