महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव से जुड़े एल्गार परिष्द मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू ने अपनी जमानत की मांग
जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने बाबू की ओर से पेश अधिवक्ता की दलील पर गौर किया.
महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव से जुड़े एल्गार परिष्द मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू ने अपनी जमानत की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली है. शुक्रवार को जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने बाबू की ओर से पेश अधिवक्ता की दलील पर गौर किया. याचिका वापस लेने की वजह बताते हुए हनी बाबू ने अपने वकील के जरिए अदालत को बताया कि मामले में पांच अन्य सह-अभियुक्तों को जमानत दे दी गई है.सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी है कि परिस्थिति बदल गई और वह मौजूदा याचिका को पेश करने के लिए वह हाईकोर्ट का रुख नहीं करना चाहते.’’ सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ उनकी याचिका पर महाराष्ट्र सरकार और राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) से जवाब मांगा था. उच्च न्यायालय ने 19 सितंबर 2022 को बाबू की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था.
हनी बाबू पर हैं ये आरोप इस मामले की जांच कर रही एनआईए ने बाबू पर प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नेताओं के कहने पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सह-साजिशकर्ता होने का आरोप लगा रखा है. बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 को गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद है. हनी बाबू ने जून 2023 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उन्होंने अपने याचिका के जरिए विशेष एनआईए अदालत के एक आदेश को चुनौती दी, जिसने इस साल की शुरुआत में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी.
क्या है पूरा मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क गई. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. हिंसक घटनाओं की वजह से एल्गार परिषद सम्मेलन ने तूल पकड़ लिया. एल्गार परिषद के एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को जांच एजेंसियों ने आरोपी बनाया. शुरुआत में पुणे पुलिस ने जांच की. उसके बाद में एनआईए ने इसे अपने हाथ में ले लिया. बाबू ने अपनी याचिका में कहा था कि विशेष अदालत ने यह मानकर “गलती” की है कि उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया दोषी ठहराने वाली सामग्री मौजूद है. एनआईए ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि बाबू ने नक्सलवाद को बढ़ावा देने की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया था और सरकार को उखाड़ फेंकना चाहता था.