हाथरस

चाय का सेवन आज आम है, लेकिन थलूगढ़ी गांव के युवा इसके सेवन से परहेज करते हैं।

सेना अफसर सादाबाद एवं उसके आस-पास के गांवों अच्छे गठीले बदन वाले युवाओं को सेना में भर्ती कर ले जाते थे।

चाय का सेवन आज आम है, लेकिन थलूगढ़ी गांव के युवा इसके सेवन से परहेज करते हैं। थलूगढ़ी गांव के साथ लालगढ़ी, मोतीगढ़ी एवं नगला ध्यान के अलावा अन्य गांव ऐसे हैं जहां के युवा चाय नहीं बल्कि छाछ अथवा दूध पीते हैं ।सुबह दौड़ लगाते और शरीर मजबूत करने के लिए व्यायाम करते नौजवान। यह नजारा आम रहता है सादाबाद तहसील की ग्राम पंचायत कुरसंडा के गांव थलूगढ़ी का। सेना भर्ती की तैयारी और दौड़ने से इस गांव के युवाओं के दिन की शुरुआत होती है। इस गांव में शायद ही कोई घर ऐसा होगा, जिसमें कोई न कोई सेना में न हो। सादाबाद से करीब नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव थलूगढ़ी की आबादी लगभग छह हजार हैं। करीब 600 परिवार इस गांव में रहते हैं। गांव थलूगढ़ी के ग्रामीण बताते हैं कि पहली बार 1959 में साहूकार, नेम सिंह एवं एवरन सिंह सेना में भर्ती हुए थे। पहले सेना अफसर सादाबाद एवं उसके आस-पास के गांवों अच्छे गठीले बदन वाले युवाओं को सेना में भर्ती कर ले जाते थे। यह तीनों लोग सूबेदार एवं सूबेदार मेजर से सेवानिवृत्त होकर आए थे। अब इनके परिवार आगरा एवं मथुरा में रहते हैं। युवा नहीं करते चाय का सेवन चाय का सेवन आज आम है, लेकिन गांव के युवा इसके सेवन से परहेज करते हैं। इस गांव के साथ लालगढ़ी, मोतीगढ़ी एवं नगला ध्यान के अलावा अन्य गांव ऐसे हैं जहां के युवा चाय नहीं बल्कि छाछ अथवा दूध पीते हैं । इसके लिए हर घर में भैंस और गाय पाली जाती है। आसपास के गांवों के युवा भी इनसे प्रेरणा लेकर सेना में जाते रहे हैं।गांव में विकास की चर्चा की जाए तो गांव तक महज एक पक्की सड़क है। केवल प्राथमिक विद्यालय है। इसके बाद थलूगढ़ी के बच्चों को कुरसंडा अथवा अन्य गांवों में पढ़ने के लिए जाना पड़ता है। अब करीब चार साल पहले कुरसंडा से तीन किमी दूर राजकीय महाविद्यालय खुला है। नौकरी में होने के कारण सभी के मकान पक्के बने हैं। कुछ गलियां अभी कच्ची हैं। इस गांव में खारे पानी की बड़ी समस्या है।   यहां की मिट्टी में कुछ तो अलग है थलूगढ़ी को सैनिकों के गांव का तमगा मिला हुआ है। यहां के ग्रामीण भी मानते हैं कि मिट्टी और पानी में कुछ ऐसा असर है कि हर भर्ती में यहां के युवाओं का सेना में चयन हो ही जाता है।  गांव के पदम सिंह के पांचों पुत्र उदय भान, सत्यवीर, सतीश, मुकेश एवं सत्य प्रकाश सेना में हैं। सूबेदार प्रताप सिहं के लक्ष्मण सिंह के दोनों पुत्र  दोनों पुत्र सेना में रहे हैं। अमित कुमार हवलदार के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद पुलिस में नौकरी कर रहे हैं। हवलदार शिव शंकर का पुत्र धर्मपाल सिंह सूबेदार से और रविन्द्र सिंह हवलदार के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद पुलिस में नौकरी कर रहे हैं।गांव के सूबेदार मेजर से सेवानिवृत्त बच्चू सिंह के पुत्र धर्मेन्द्र सिंह कर्नल पद पर तैनात है और उनकी पत्नी प्रिया भी कर्नल पद पर मेडिकल कोर मेरठ में तैनात है। अब इसी गांव के सूबेदार जसवंत सिंह के पुत्र सुधीर कुमार का चयन सेकेंड लेफ्टीनेंट के पद पर हो गया है। इसके साथ ही कुछ युवक वायुसेना एवं नौसेना में भी नौकरी कर रहे हैं। हालांकि यहां के बुजुर्ग कहते हैं कि अग्निवीर भर्ती के बाद से युवा पुलिस भर्ती को ही वरीयता देने लगे हैं।

युवाओं में जोश भरती हैं पूर्व सैनिकों की गौरव गाथा

यहां के पूर्व सैनिकों की गौरव गाथा युवाओं के लिए प्रेरणा का काम करती है। सैनिक लगातार उन्हें अपने युद्ध के किस्से बताते रहते हैं। सेवानिवृत्त सूबेदार प्रताप सिंह अपने युद्ध के दौरान के अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि वह वर्ष 1963 में सेना में भर्ती हुए और 1965 एवं 1971 की युद्ध में हिस्सा लिया। कपड़े बदलने तक का समय नहीं मिलता था, हां युवा होने के कारण जोश था, हमारे कई साथी शहीद हुए लेकिन इस बात का कोई भय नहीं था कि कल क्या होगा। मेरे बाद मेरे दोनों पुत्र सेना में भर्ती हुए। गोला गिरते ही कांप जाती थी धरती…सेवानिवृत्त हवलदार रघुवीर सिंह ने कारगिल युद्ध के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि मेरी यूनिट युद्ध के दौरान पूंछ राजौरी सेक्टर में तैनात थी। कई गोले हमारे आसपास आकर गिरे और पूरी धरती कांप जाती थी। हम लोग जमीन के अंदर बने बंकरों में थे। मेरी आंखों के सामने गोले से ईख का करीब पांच बीघा खेत के गन्ने ऊपर से इस तरह से कट कर गिर पड़े जैसे उसे किसी ने मशीन से बराबर काटा हो। वहां पर लगभग 25 फीट गहरा एवं लगभग 30 फीट चौड़ा गड्ढा बन गया था, किसी ने हिम्मत नहीं हारी अंत में विजय हमारी हुई। इनके पिता सूबेदार हरी सिंह ने भी सन 1971 का युद्ध लड़ा था।

JNS News 24

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