अलीगढ़

जैन समाज के दसलक्षण महापर्व का आगाज कल से

8 सितम्बर से 17 सितम्बर तक होंगे धार्मिक आयोजन

जैन समाज के दसलक्षण महापर्व का आगाज कल से
8 सितम्बर से 17 सितम्बर तक होंगे धार्मिक आयोजन।
उत्तम क्षमा धर्म के साथ दस लक्षण पर्व का शुभारंभ कल से होगा। खिरनी गेट पर मुनि श्री स्वयंभू सागर महाराज एवं मुनि श्री अनुकरण सागर महाराज के सानिध्य मे होंगे धार्मिक आयोजन।
जैन धर्म मे दसलक्षण पर्व का बहुत महत्व है कोई भी पर्व किसी घटना या महापुरुष से सबंधित होता है किन्तु जैन धर्म का यह पर्व आत्मा से जुड़ा हुआ है इसलिए से महापर्व कहते हैं यह महान पर्व का शुभारंभ 8 सितंबर से 17 सितंबर तक एवं क्षमावाणी पर्व के साथ 18 सितम्बर को समापन होगा। यह बातें शनिवार को श्री जैन समाज सेवा समिति (रजि.) अलीगढ़ के संयोजक राजीव जैन ,मंत्री मुनेश जैन,मीडिया प्रभारी मयंक जैन ने प्रेस विज्ञप्ति मे कही ,यह पर्व जैन समाज का सबसे पवित्र पर्व है इस दौरान जैन मंदिरों में धर्म प्रभावना की जाती है मंदिरों मे विशेष साफ सफाई एवं सुंदर जगमग रोशनी से सजाया गया है दिगंबर संप्रदाय में यह पर्व प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है इन दौरान जैन मंदिर खूब आनंद छाया रहता है उपवास,जप , तप, साधना आराधना और उपासना के जरिए जीवन को पवित्र किया जाता है यह आत्म शोधन का पर्व है प्रतिदिन शहर के जैन मंदिरों मे प्रात: जैन श्रावक श्राविका पूजन ,विधान , स्वाध्याय, ध्यान आदि धार्मिक क्रियाओं मे लीन रहते है।
सांयकालीन मंदिरों मे आरती ,भजन एवं समाज की संस्थाओ द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे। दस लक्षण महापर्व भदवा शुद्धि से शुरू होता है और आशोज वदी एकम इसके साथ ही अनंत चतुर्दशी के दिन में मंदिरों मे शाम को श्रीजी का जलाभिषेक होगा।18 सितंबर को विशेष रूप से क्षमावाणी पर्व का मनाया जाएगा जिसमें सभी से संपूर्ण वर्ष में हुई गलतियों का पश्चाताप करते हुए क्षमा याचना करेंगे।
यह है दसलक्षण पर्व
1.क्षमा- सहनशीलता। क्रोध को पैदा न होने देना। क्रोध पैदा हो ही जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना।
2.मार्दव- चित्त में मृदुता व व्यवहार में नम्रता होना। 3.आर्जव- भाव की शुद्धता। जो सोचना सो कहना। जो कहना सो करना।
4.शौच- मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। आसक्ति न रखना। शरीर की भी नहीं।
5.सत्य- यथार्थ बोलना। हितकारी बोलना। थोड़ा बोलना।
6.संयम- मन, वचन और शरीर को काबू में रखना।
7.तप- मलीन वृत्तियों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना।
8.त्याग- पात्र को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि सद्वस्तु देना।
9.अकिंचन्य- किसी भी चीज में ममता न रखना। अपरिग्रह स्वीकार करना।
10.ब्रह्मचर्य- सद्गुणों का अभ्यास करना और अपने को पवित्र रखना।

JNS News 24

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close
error: Content is protected !!