हाथरस में फैल रहा है अवैध कालोनियों का मकड़ जाल
सड़कों के किनारे बनी बड़ी संख्या में काॅलोनी मानकों को पूरा नही करती

हाथरस। जनपद में अवैध काॅलोनियों का मकड़जाल चारों और फैल रहा है, जहंा एक गरीब आदमी को अपना घर बनाने के लिए अपनी खून पसीने की कमाई का पूरा पैसा लगाना पड़ता है, पर उसे घर बनाने के बाद पता चलता है, जिस जमीन पर उसने घर बनाया है, वो जमीन घर बनाने के लिए, सरकारी कागजों में कहीं दर्ज ही नहीं है। एक घर बनाने के लिए आम आदमी को एक दो नहीं कई सारी परमीशन लेनी होताी है, बिजली, पानी, सड़क, नक्शा आदि की परमीशन लेने के लिए उसे महीनों सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते है। इन चक्करों से बचने के लिए वो एक काॅलोनी में प्लाॅट लेता है, पर मकान बनाने के बाद उसे पता चलता है कि इस काॅलोनी के लिए लाइट एप्रूड़ ही नहीं है, न काॅलोनी में पार्क होता न शीवर लाइन, न सड़क न सुरक्षा के कोई इन्तजाम, न इसका रजिस्ट्रेशन आबादी के लिए सरकारी कागजों में होता है। ऐसी एक या दो नही हाथरस से आगरा, अलीगढ़, मथुरा, बरेली, एटा, इगलास, जलेशर किसी भी मार्ग पर चले जाओं, कालोनियों दिख जायेंगी। उपजाउ खेतों में उसी खेत की मिट्टी को एकत्र कर सड़क बना कर उसके प्लाॅट बना देते है, और हाजरों रूपए गज बेच कर गुम हो जाते है। आपकों यदि घर बनाना है तो लाखों रूपए खर्च करने के बाद भी आप को सही कीमत का घर नहीं मिलेगा, एक प्लाॅट या मकान की कीमत आसमान को छती नजर आयेगी। एक दो नहीं आपको लाखों रूपए गज में जमीन मिलेगी वो भी बिना किसी सरकारी दस्ताबेज में दर्ज हुए। शहरी सीमा से लगी किसानों की जमीन भू माफिया सस्ते दामों में ले लेते हैं और प्लॉट काटने लगते हैं। सरकारी और ग्रीन बेल्ट की जमीन भी भू माफिया नहीं छोड़ते हैं। बिजली, सड़क, ड्रेनेज जैसी सुवधिाएं अवैध कॉलोनियों में आसानी से मिल जाती हैं। अवैध कॉलोनी काटने में सबसे ज्यादा राजनीतिक संरक्षण होता है और जब भी कार्रवाई के लिए प्रशासन, विनियमित अधिकारी मौके पर जाते है, तो कॉलोनी बनाने वाला उसे छोड़कर चला जाता हैं, प्रशासनिक कार्यवाही का शिकार वहां घर खरीदने वाले माशूम नागरिक को भुगतना पड़ता है, सपनों का घर बनाने के बाद उस पर कार्यवाही को झेलना पड़ता है।आप काॅलोनी में प्लाॅट या घर लेने से पहले करें पूरी जानकारी हाथरस। किसी भी काॅलानी को सबसे पहले रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण है परियोजना पंजीकरण आवश्यक होता है। सभी रियल एस्टेट परियोजनाएं जो 500 वर्ग मीटर से बड़ी हैं या जिनमें 8 से अधिक अपार्टमेंट हैं, उन्हें रेरा के साथ पंजीकरण कराना होगा। बिल्डरों को परियोजना के बारे में विस्तृत जानकारी देनी होगी, जिसमें लेआउट, योजना और स्थान शामिल होंगे। लेकिन रेरा तो दूर यंहा तो बड़ी संख्या में कट रही काॅलोनियों ने खेती की जमीन को आबादी में भी परिर्वतित नहीं कराया है।