बरेली में बेहद असंवेदनशील घटना सामने आई,छात्रा को सेनेटरी पैड मांगने पर क्लास से बाहर कर दिया गया
शिक्षिकाओं ने उसकी मदद किए बिना घर भेज दिया. इस घटना पर नगीना लोकसभा सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कड़ी आपत्ति जताई

उत्तर प्रदेश के बरेली में बेहद असंवेदनशील घटना सामने आई, जहां परीक्षा देने पहुंची छात्रा को सेनेटरी पैड मांगने पर क्लास से बाहर कर दिया गया और शिक्षिकाओं ने उसकी मदद किए बिना घर भेज दिया. इस घटना पर नगीना लोकसभा सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कड़ी आपत्ति जताई है और कहा कि बेटियों का सम्मान और उनकी जरुरतें हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये घटना एक छात्रा का नहीं बल्कि पूरे समाज का अपमान है, जो कई गंभीर सवाल खड़े सकती है.आसपा सांसद ने कहा कि ‘यह घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि हमारे समाज की असंवेदनशीलता और शैक्षणिक संस्थानों की विफलता का कड़वा सच है. मासिक धर्म एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है, जिसे समझने और सम्मान देने की आवश्यकता है. उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के स्कूल में एक छात्रा को न केवल उसकी आवश्यकता के समय मदद से वंचित किया गया, बल्कि उसे अपमान और असहायता के साथ घर भेज दिया गया. यह निंदनीय और अस्वीकार्य है और विद्यालय की जिम्मेदारी से सीधा इनकार है.’
चंद्रशेखर आजाद ने की मांग
उन्होंने इस घटना पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘यह घटना गंभीर सवाल खड़े करती है.
1. क्या स्कूल और शिक्षण संस्थान “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के असली उद्देश्य को समझ पाए हैं?
2. क्या बेटियों को शिक्षा के साथ उनके सम्मान और जरूरतों का ध्यान रखने वाला माहौल मिल पा रहा है?
3. क्या इस अभियान का लाभ केवल कागजों और नारों तक सीमित रह गया है?
हमारी सशक्त मांगें:
1. शैक्षणिक संस्थानों में बेटियों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं. सभी स्कूलों में सेनेटरी पैड की उपलब्धता और एक संवेदनशील शिकायत निवारण तंत्र को अनिवार्य किया जाए.
2. मासिक धर्म जैसे विषयों पर शिक्षकों, छात्राओं और अभिभावकों को जागरूक करने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएं.
3. “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान के तहत शैक्षणिक संस्थानों की जवाबदेही तय की जाए, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.
4. दोषी प्रधानाचार्य और शिक्षकों के खिलाफ तत्काल और कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि बेटियों के अधिकारों और सम्मान के साथ खिलवाड़ करने वालों को सख्त संदेश मिले.”बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का उद्देश्य तब तक अधूरा रहेगा, जब तक बेटियों को उनकी मूलभूत जरूरतें और सम्मान नहीं मिलेगा. यह अभियान केवल नारों तक सीमित नहीं रह सकता; इसे हर बेटी की ज़िंदगी में वास्तविक बदलाव लाने का जरिया बनना होगा.