अलीगढ़ के मलखान सिंह जिला अस्पताल ने 14 घंटे का भीषण बिजली संकट झेला। 7 सितंबर को गुल हुई बत्ती 8 सितंबर की भोर में आई
शनिवार दोपहर में दो बजे कोई फाल्ट हुआ और परिसर के आधे से अधिक हिस्से की आपूर्ति बंद होदिन भर स्टाफ व बिजली विभाग में इसी बात को लेकर खींचतान चलती रही
अलीगढ़ के मलखान सिंह जिला अस्पताल ने 14 घंटे का भीषण बिजली संकट झेला। 7 सितंबर को गुल हुई बत्ती 8 सितंबर की भोर में आई। वार्डों में भर्ती मरीज गर्मी में बेहाल रहे। दिन तो किसी तरह कट गया लेकिन रात ने बेचैनी बढ़ा दी। जब रात को भी बिजली नहीं आई तो परेशान मरीज वार्ड से बाहर निकलकर पेड़ों के नीचे आ गए। यहां रात भर मच्छरों से लड़े। क्योंकि इन्वर्टर-जेनरेटर तक जवाब दे गए था लिहाजा इमरजेंसी में टार्च की रोशनी में उपचार किया गया।आधी रात को दूसरे फाल्ट के बाद खड़े हुए कान
विद्युत विभाग के नियम के अनुसार किसी भी विद्युत संयोजन में विद्युत मीटर तक की आपूर्ति पहुंचने का जिम्मा बिजली विभाग का है। उसके बाद बड़े संस्थानों में खुद संस्थान स्तर से कर्मचारी बिजली व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए रखे जाते हैं। ऐसा ही कुछ जिला अस्पताल में है। जिला अस्पताल में 11 हजार केवी का संयोजन है। जिसके लिए अलग से ट्रांसफार्मर व मीटर लगा हुआ है। मीटर के बाद परिसर में जा रही लाइन में शनिवार दोपहर में दो बजे कोई फाल्ट हुआ और परिसर के आधे से अधिक हिस्से की आपूर्ति बंद होदिन भर स्टाफ व बिजली विभाग में इसी बात को लेकर खींचतान चलती रही कि हमारे यहां से लाइट जा रही है। आप अंदर देखो।मगर अंदर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इसके बाद रात करीब दो बजे अस्पताल परिसर में ही रखे ट्रांसफार्मर के पास बंदर चिपकने से फाल्ट हुआ। पूरे परिसर की आपूर्ति बंद हो गई। इसके बाद हायतौबा मची। बाहर देखा तो आपूर्ति आ रही है। बस अंदर परिसर में ही बिजली नहीं है। इस पर प्रयास कर अस्पताल के बिजलीकर्मी व विद्युत विभाग के स्टाफ को अनुनय विनय के बाद बुलाकर किसी तरह रविवार सुबह चार बजे तक आपूर्ति बहाल की गई। दिन में ओपीडी बंद हो गई थी। इसके बाद बिजली गई थी। शाम तक बिजली आने का इंतजार होता रहा। मगर शाम को अंधेरा होने के बाद यहां अंधेरे में ही इमरजेंसी से लेकर ओपीडी तक उपचार होता रहा। इन्वर्टर बैठ गए। जेनरेटर भी काम नहीं करता दिखा। इमरजेंसी में रात को दो बजे बलवीर सिंह देहली गेट से अपनी मां को पेट के दर्द की शिकायत पर लेकर पहुंचे तो चिकित्सकों ने टार्च की रोशनी मेंं उपचार किया। इसी तरह वार्डों में भी हालात रहे। जब जेनरेटर जवाब दे गया तो मरीज व तीमारदार भी बाहर आ गए। किसी तरह उन्होंने रात पेड़ों के नीचे काटी