राजनीति

लोकसभा चुनाव में एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला

नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि चुनाव में गठबंधन कितनी सीटें जीत पाता है.

सूर्य के उत्तरायण में जाने से ठीक 2 दिन पहले दिल्ली की कुर्सी पर निगाह जमाए विपक्षी दलों ने एक वर्चुअल बैठक की. इस बैठक में कांग्रेस, डीएमके समेत 14 दलों के मुखिया शामिल हुए. इंडिया गठबंधन की बैठक में नीतीश कुमार के पद को लेकर बड़ा फैसला होना था, लेकिन नहीं हो पाया. नीतीश कुमार बैठक में गठबंधन के अगुवा क्यों नहीं बन पाए, इसके पीछे 2 तर्क दिए जा रहे हैं. पहला तर्क जेडीयू का है. जेडीयू का कहना है कि नीतीश कुमार ने संयोजक बनने से खुद इनकार कर दिया है. दूसरा तर्क बैठक में शामिल दूसरे दलों के नेताओं का है. सूत्रों के मुताबिक सीताराम येचुरी ने बैठक में कहा कि ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे से राय-विचार करने के बाद ही संयोजक का फैसला हो. कई पार्टी के नेता इस पर सहमत नजर आए. राहुल गांधी का कहना है कि ममता बनर्जी की पार्टी नीतीश कुमार के नाम पर राजी नहीं है. संयोजक का काम सभी पार्टियों में सामंजस्य बनाए रखना है. संयोजक टिकट बंटवारे में अहम भूमिका निभाते हैं. इंडिया गठबंधन में टिकट बंटवारे की प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है. चुनाव में टिकट बंटवारा एक अहम काम माना जाता है. चुनाव से पहले बनने वाले मेनिफेस्टो में भी संयोजक की छाप दिखती है. इसे उदाहरण से समझिए- एनडीए गठबंधन बनने से पहले बीजेपी राम मंदिर, धारा 370 को अपने मेनिफेस्टो में शामिल करती थी, लेकिन एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्नांडिस के विरोध के बाद 1998 और 1999 के मेनिफेस्टो में बीजेपी ने इस मुद्दे से खुद को किनारे कर लिया था. चुनाव कैंपेनिंग में भी संयोजक की भूमिका सबसे अहम होती है. किस नेता की कहां ड्यूटी लगाई जाए, यह भी संयोजक ही तय करते हैं.

नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने पर पहले क्यों हुई चर्चा?
गठबंधन की बैठक से पहले ये तय माना जा रहा था कि संयोजक पद पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम की मुहर लग जाएगी. मगर बैठक के दौरान नीतीश कुमार ने ये ऑफर ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि उन्हें किसी पद की लालसा नहीं है, संयोजक कांग्रेस पार्टी की तरफ से कोई होना चाहिए.नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने की चर्चाएं तब और तेज हो गई थी जब उन्होंने खुद जेडीयू की कमान संभाल ली. इससे पहले ललन सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. ये बदलाव इंडिया गठबंधन की पिछली बैठक के तुरंत बाद हुआ. ऐसा माना जाने लगा कि जब पार्टी की कमान नीतीश के पास है तो इंडिया गठबंधन में पार्टी से जुड़े सारे फैसले भी वही लेंगे. दूसरा, इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं को ये भी डर है कि अगर नीतीश कुमार को साथ नहीं रखा तो बिहार की 40 लोकसभा सीटें हाथ से निकल सकती है. क्योंकि पिछले चुनावों में बिहार में जेडीयू का अच्छा रिकॉर्ड रहा है और नीतीश का साथ दूसरी पार्टियों के लिए भी फायदेमंद सौदा रहा है.2019 लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए की सहयोगी पार्टी थी. तब NDA ने बिहार की 40 में से 39 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी ने 17, जेडीयू ने 16 और एलजेपी ने छह सीटें जीती थीं. इससे पहले 2014 लोकसभा चुनाव में जेडीयू अकेले चुनाव में उतरी थी, तब भी 16 फीसदी वोट मिले थे. इसलिए इंडिया गठबंधन के नेता नीतीश कुमार को इग्नोर नहीं करना चाहते.

नीतीश कुमार के लिए PM कुर्सी तक पहुंचना कितना आसान?
नीतीश कुमार ने सीधे कभी भी खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की बात नहीं कही. मगर उनके बयानों से ऐसा लगता रहा है कि कहीं न कहीं पीएम बनने की लालसा रखते हैं. एनडीए से अलग होने के बाद एक बार उन्होंने कहा था, ‘जब तक हम जीवित हैं तब तक बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. अब जहां हैं, वहीं रहकर बिहार और देश की सेवा करेंगे.’ इसके अलावा उनकी पार्टी के नेता अक्सर उन्हें ही पीएम पद के लिए सबसे योग्य दावेदार बताते रहे हैं. यहां तक कि आरजेडी के नेता भी कह चुके हैं कि नीतीश कुमार पीएम पद के लिए सबसे ज्यादा योग्य उम्मीदवार हैं.पिछले साल आरजेडी के वरीय नेता और विधायक भाई वीरेंद्र ने एक बयान में कहा था- देश का प्रधानमंत्री बिहार से होना चाहिए, नीतीश कुमार की मुहिम से ही पूरा विपक्ष एकजुट हो पाया है. हालांकि इसपर कुछ लोगों ने तंज भी कसा. कहा कि आरजेडी नीतीश कुमार को पीएम इसलिए बनाना चाहती है ताकि बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तेजस्वी यादव बैठ जाएं.अब तीन प्वाइंट से समझते हैं नीतीश कुमार के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी कितनी दूर है.

सबसे पहले बीजेपी को हराना जरूरी
कुछ ही महीने में देश में लोकसभा चुनाव होना है. इंडिया गठबंधन का सीधा मुकाबला नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले बीजेपी और एनडीए से है. नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में INDIA गठबंधन कितनी सीटें जीत पाता है. अगर गठबंधन की सभी पार्टियां मिलकर लोकसभा में कम से कम 272 सीटें जीत पाती हैं तभी नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद भी बनेगी. अगर गठबंधन बीजेपी को हराने में नाकाम रहता है या 272 में से एक भी सीट कम जीत पाता है तो उसके सत्ता में आने और नीतीश के पीएम बनने की उम्मीद खत्म हो जाएगी. 272 से कम सीटें आने पर अन्य विपक्षी दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी. ये आसान नहीं होगा.दिसंबर 2023 में एबीपी न्यूज सी वोटर के एक ओपिनियन पोल में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है. इसके मुताबिक एनडीए को 295 से 335 सीटें मिल सकती हैं, जबकि इंडिया गठबंधन को 165 से 205 सीटें मिलने की उम्मीद है. अन्य के खाते में 35-65 सीटें जा सकती हैं. अगर बात करें वोट प्रतिशत की तो एनडीए को 42 फीसदी, इंडिया गठबंधन को 38 फीसदी और अन्य को 20 फीसदी वोट मिल सकता है.

अब तक कितने संयोजक प्रधानमंत्री बने
ये भी एक अहम पहलू है कि देश में अबतक हुए लोकसभा चुनाव के दौरान बने गठबंधन के कितने संयोजक को प्रधानमंत्री बनाया गया. इतिहास में सत्तारूढ़ पार्टी को हटाने के लिए कई बार गठबंधन बने. मगर अभी तक एक बार ही ऐसा है जब चुनाव में जीत के बाद गठबंधन के संयोजक को ही प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया.बात है साल 1989 की. राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने से चूक गई थी. फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भारत के आठवें प्रधानमंत्री की शपथ ली. वीपी सिंह राष्ट्रीय मोर्चा नाम से बने गठबंधन के संयोजक थे और इसी मोर्चे ने उनको प्रधानमंत्री भी बना दिया था. एक साल पहले ही वीपी सिंह कांग्रेस पार्टी छोड़ जनता पार्टी में शामिल हुए थे. इसके बाद 1996, 1997, 2004, 2014, 2019 में गठबंधन की सरकार बनी. मगर कभी भी गठबंधन के संयोजक को प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं मिली. इस आधार पर कहा जा सकता है कि अगर इंडिया गठबंधन चुनाव में जीत जाती है तो नीतीश कुमार की पीएम बनने की राह आसान हो सकती है.

नीतीश कुमार को किस किसके समर्थन की जरूरत
आधिकारिक तौर पर नीतीश कुमार को अभी सिर्फ आरजेडी का साथ मिला है. पर्दे के पीछे समाजवादी पार्टी, एनसीपी, सीपीआई (एम) का भी साथ माना जा सकता है. लोकसभा में अभी आरजेडी का कोई मेंबर नहीं है. समाजवादी पार्टी के लोकसभा में 2, एनसीपी के 5, सीपीआई (एम) के 3 जेडीयू के खुद 16 सदस्य हैं. इस हिसाब से अभी नीतीश कुमार के पास सिर्फ 26 सांसदों का साथ है. अगर आगामी चुनाव में इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो ये सीटें बढ़ सकती हैं. अगर कांग्रेस, डीएमके और टीएमसी भी नीतीश के नाम पर सहमत होते हैं तो समर्थन वाली सीटों का आंकड़ा और भी बढ़ जाएगा. और नीतीश कुमार के लिए PM कुर्सी तक पहुंचना आसान हो जाएगा.खैर, ये तो लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि 2024 में जनता किसको सत्ता की चाबी सौंपती है. अगर एनडीए गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया तो लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे.

JNS News 24

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