समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से विश्व का सबसे बड़ा मुस्लिम देश इंडोनेशिया अब अपने लिए नई राजधानी बसा रहा
शहर की सीमा के अंदर 1 करोड़ लोगों का घर पानी में डूब चुका है. वहीं महानगरीय इलाकों में रहने वाले 3 करोड़ लोगों के आशियाने डूबने की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं
समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से विश्व का सबसे बड़ा मुस्लिम देश इंडोनेशिया अब अपने लिए नई राजधानी बसा रहा है. इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता का 40 फीसदी हिस्सा पानी में डूब चुका है, जिसकी वजह से विश्व के बड़े शहरों में शुमार जकार्ता में भारी समस्या खड़ी हो गई है. जावा के उत्तर पश्चिमी तट पर बसा जकार्ता शहर इंडोनेशिया का सबसे बड़ा शहरी केंद्र रहा है, लेकिन समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से शहर की सीमा के अंदर 1 करोड़ लोगों का घर पानी में डूब चुका है. वहीं महानगरीय इलाकों में रहने वाले 3 करोड़ लोगों के आशियाने डूबने की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं.बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए इंडोनेशिया की सरकार अपनी राजधानी को नुसंतारा शहर में बसाने की योजना तैयार की है. इस शहर को बसाने के लिए जकार्ता से उत्तर में करीब 1400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोर्नियो के पूर्वी तट पर निर्माण कार्य चल रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इंडोनेशिया की सरकार इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए 35 अरब डॉलर का खर्च करेगी. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए साल 2045 का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
पहले भी ये देश बदल चुके हैं राजधानी
इंडोनेशिया से पहले भी कुछ देश अपनी राजधानी बदल चुके हैं, इसमें ब्राजील और नाइजीरिया जैसे देश शामिल हैं. लेकिन इनमें भी जकार्ता का मामला थोड़ा अलग है क्योंकि इंडोनेशिया में जलवायु संकट मुख्य वजह बना है, जिसकी वजह से राजधानी को स्थानांतरित करना पड़ रहा है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने की वजह अत्यधिक भूजल दोहन बताया जा रहा है, जिसकी वजह से अब इंडोनेशिया की सरकार को तत्काल कार्रवाई करनी पड़ रही है.
नई राजधानी में प्राकृतिक आपदाओं का ध्यान
साल 2019 के अगस्त महीने में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने राजधानी के बदलने का समर्थन किया था. इसके बाद समुद्र से निकटता, सुनामी, भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट जैसी गंभीर प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखकर नई राजधानी का चयन किया गया है. इस बीच पर्यावरण विशेषज्ञों ने गंभीर संभावना के बारे में चेतावनी दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसी ही हालत रही तो साल 2050 तक जकार्ता का एक तिहाही हिस्सा पानी में डूब सकता है.