मेला श्रीदाऊजी महाराज की शुरुआत 113 वर्ष पहले एक दिवसीय मेले के रूप में हुई थी
साल-दर-साल यह मेला वृहद रूप लेता गया, वर्तमान में 20 दिन के लिए इस मेले का होता है आयोजन

हाथरस। ब्रज क्षेत्र के लक्खी मेला श्रीदाऊजी महाराज की शुरुआत 113 वर्ष पहले एक दिवसीय मेले के रूप में हुई थी। साल-दर-साल यह मेला वृहद रूप लेता गया और वर्तमान में 20 दिन के लिए इस मेले का आयोजन होता है। कभी सिर्फ एतिहासिक किला परिसर स्थित मंदिर श्रीदाऊजी महाराज के परिसर तक सिमटे रहने वाले इस मेले की रंगत अब आसपास के बाजारों में भी दिखाई देती है।
इतिहास पर नजर डालने पर पता चलता है कि इस मेले की शुरुआत 113 साल पहले वर्ष 1912 में हुई थी। उस समय हाथरस तहसील थी और श्यामलाल इसके तहसीलदार थे। कहते हैं एक बार तहसीलदार श्यामलाल के बेटे की तबीयत खराब हो गई। तहसीलदार को दाऊजी महाराज ने स्वप्न दिया, जिसके बाद तहसीलदार श्यामलाल ने जैसे ही मंदिर खुलवाया और पूजा पाठ शुरू किया, वैसे ही उनका बेटा स्वस्थ होने लगा। इसी वाकये के बाद तहसीलदार ने यहां एक दिवसीय मेले का आयोजन कराया। तब से यहां मेले की परंपरा शुरू हुई।करीब 278 साल पुराना है दाऊजी मंदिर किला परिसर में स्थित दाऊजी मंदिर करीब 278 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर पर वर्ष 1817 में अंग्रेजों ने तोप से गोले बरसाए थे, लेकिन यह गोले मंदिर की दीवार को भेद नहीं सके थे। मंदिर के गुंबद पर आज भी तोप गोलों के निशान स्पष्ट देखे जा सकते हैं। एक गोला आज भी मंदिर में मौजूद है।शहर के धनवान चंदा कर कराते थे आयोजनहाथरस। शुरुआती दौर में शहर के धनवान लोग इस मेले का आयोजन चंदा कर कराते थे। इसके बाद आजीवन सदस्यों द्वारा अध्यक्ष चुनकर हर साल मेले का आयोजन किया जाने लगा। बाद में ठेका प्रथा शुरू हुई और हर साल मेले का तहबाजारी ठेका उठाकर उससे मिलने वाली धनराशि से इसका आयोजन किया जाने लगा। अब राजकीय घोषित होने के बाद शासन से भी इस मेले के लिए बजट मिलने लगा है।
मेले के इतिहास पर एक नजर
-1912 में पहली बार बलदेव छठ के दिन हुआ एक दिवसीय मेले का आयोजन।
-1986 तक आजीवन सदस्य चुनते थे मेले का अध्यक्ष।
-1987 में मेले के लिए सरकारी फीस बढ़ाए जाने पर ली गई न्यायालय की शरण।
-जनता से चुना जाता था रिसीवर, एसडीएम बनने लगे पदेन अध्यक्ष।
-1990 तक मेले का आयोजन बलदेव छठ से अनंत चौदस तक कुल आठ दिन होता था।
-जिला प्रशासन समापन के बाद दो चार दिन मेला बढ़ा देता था।
-1996 के बाद मेला परिसर का तेजी से बदला स्वरूप
-कच्चे पंडाल को दिया स्टेडियम का रूप, सड़कें कराई गईं पक्की।
-1991 से जनता की मांग को देखते हुए मेले का आयोजन 20 दिन के लिए होने लगा।
-2006 में न्यायालय की ओर से डीएम को स्थायी रिसीवर नियुक्त किया गया।
-2019 के बाद कोरोना के चलते दो साल सांकेतिक रूप से हुआ मेले का आयोजन।
-2024 मेें मेले को राजकीय घोषित किया गया, अब डीएम ही इसके सर्वेसर्वा हैं।हाथरस।अतुल आंधीवाल एडवोकेट, मेला के पूर्व संयुक्त रिसीवर, सलाहकार का कहना है कि हमारे पिता दाऊजी मेले के आजीवन सदस्य थे। दाऊजी मंदिर के साथ ही इस मेले का अपना अलग इतिहास है। 1912 में पहली बार आयोजन के बाद से अब राजकीय घोषित होने तक मेले में बड़े बदलाव हुए हैं। पहले मेला कच्चे पंडाल में होता था, लेकिन अब यहां स्टेडियम सहित कई सुविधाएं उपलब्ध हैं।
हाथरस से मनोज शर्मा की रिपोर्ट



