अलीगढ़

किसान बन्धु आलू, गेंहू व सरसों में वैज्ञानित संस्तुति के आधार पर ही उर्वरकों का करें प्रयोग

जिले में रबी की उपरोक्त तीन ही फसलें गेंहूँ, आलू एवं सरसों ही मुख्य है

अलीगढ़ जिला कृषि अधिकारी धीरेन्द्र कुमार चौधरी ने अवगत कराया है कि जिले में रबी सीजन में गेहूँ, आलू व सरसों की खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है। फसलों के उत्पादन में उर्दरकों का महत्वपूर्ण योगदान है। किसान बन्धु फसलों में आवश्यकतानुसार संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। गेंहूँ फसल में मुख्य पोषक तत्वों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 24 किलोग्राम फास्फोरस एवं 16 किलोग्राम पोटेशियम प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। इसके लिए कृषक बच्धु वैज्ञानिक संस्तुति के अनुसार प्रति एकड़ 50 किलो डीएपी उर्वरक का प्रयोग करें। इसी प्रकार से आलू फसल में मुख्य पोषक तत्वों में 72 किलोग्राम नाइट्रोजन, 32 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटेशियम प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। इसके लिए कृषक बन्धु वैज्ञानिक संस्तुति के अनुसार प्रति एकड़ 75 किलोग्राम  डीएपी उर्वरक का प्रयोग करें। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार सरसों की फसल में मुख्य पोषक तत्वों में 48 किलोग्राम नाइट्रोजन, 24 किलोग्राम फास्फोरस एवं 24 किलोग्राम पोटैशियम प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। इसके लिए कृषक बन्धु वैज्ञानिक संस्तुति के अनुसार प्रति एकड़ 50 किलोग्राम डीएपी उर्वरक का प्रयोग करें। इसके अलावा कृषक बन्धु सरसों की फसल में 16 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से सल्फर का प्रयोग अवश्य करें। सल्फर के प्रयोग से सरसों फसल के दानों में तेल की मात्रा बढती है एवं गुण्रवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त होता है। जिले में रबी की उपरोक्त तीन ही फसलें गेंहूँ, आलू एवं सरसों ही मुख्य है  उन्होंने किसान बच्धुओं से आव्हान किया कि वह उर्वरकों का सही समय, सही जगह एवं संतुलित मात्रा में प्रयोग करें। उपर्युक्त वैज्ञानिक तथ्यों को फसल उत्पादन प्रक्रिया में ना लागू करने से फसल उत्पादन की लागत बढती है। मृदा, जल एवं वायु प्रदूषण की समस्या भी उत्पन होती है। उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग से मृदा में आवश्यक पोषक तत्वों का उपयोग दक्षता कम होती है, फसलों द्वारा मृदा से पोषक तत्वों का ग्रहण पूरी तरह से नहीं होता एवं आवश्यक पोषक तत्वों की जल के साथ अधिक निकासी हो जाने के कारण फसलों के उत्पादन में कमी आती है। उन्होंने कहा कि किसान बन्धु प्रति वर्ष अधिक मात्रा में डीएपी का प्रयोग करते जा रहे हैं और मानना है कि डीएपी का प्रभाव फसलों पर प्रति वर्ष कम होता जा रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि मृदा में पोषक तत्वाों को ग्रहण करने के लिये आवश्यक जीवांश कार्बन की मात्रा कम हो रही है, जिससे कि मृदा पोषक तत्वों को पौधों के लिए घुलनशील रूप में उपलब्ध नहीं करा पा रही है। कृषक बन्धु ऐसा समझते हैं कि उर्वरक जैसे डीएपी का अत्यधिक प्रयोग करने पर मृदा की उत्पादकता बढती है जबकि निर्धारित संस्तुति से अधिक प्रयोग करने पर आवश्यक पोषक तत्व सिंचाई जल के साथ बहकर व्यर्थ हो जाते है जिससे कृषकों का धन एवं श्रम दोनों अधिक लगता है। ऐसे में कृषक बन्धुओं से अनुरोध है कि उपरोक्त निर्धारित उर्वरक विशेषकर डीएपी का अत्यधिक प्रयोग न करें, पृथक से पोटाश खरीदने पर अत्यधिक व्यय न हो इसके लिए एनपीके उर्वरक का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें।

JNS News 24

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