पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव एक बार फिर से चरम पर
कच्चा तेल की कीमतों में तेजी आने से भारत को ज्यादा नुकसान हो सकता है
पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव एक बार फिर से चरम पर है. ईरान और इजरायल पहली बार आमने-सामने आ चुके हैं. पश्चिम एशिया में प्रत्यक्ष युद्ध की नौबत बनी हुई है. इस तनाव का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल सकता है. भारत में भी लोगों की जेब पर इस संकट का असर हो सकता है.शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड का वायदा 71 सेंट मजबूत होकर 90.45 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. वहीं अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड के दाम में 64 सेंट की तेजी आई और यह 85.66 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. हालांकि साप्ताहिक आधार पर दोनों के भाव में हल्की नरमी ही दर्ज की गई, लेकिन ऐसा खतरा मंडरा रहा है कि कच्चे तेल का भाव 100 रुपये प्रति डॉलर के पार निकल सकता है.पूरे सप्ताह के हिसाब से देखें तो ब्रेंट क्रूड के भाव में 0.80 फीसदी की नरमी आई, जबकि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट के भाव में 1 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई. कच्चे तेल का यह भाव इजरायल पर ईरान के द्वारा हमला किए जाने से पहले का है. हमले की आशंका के चलते सप्ताह के अंत में कीमतों में तेजी आने लगी. उसके बाद शनिवार देर रात ईरान ने इजरायल पर 200 से ज्यादा ड्रोन व मिसाइलों से हमला किया. इस हमले में इजरायल को मामूली नुकसान हुआ, लेकिन अब इस बात का खतरा बढ़ गया है कि पश्चिम एशिया में प्रत्यक्ष युद्ध न शुरू हो जाए.
आयात पर निर्भर रहता है भारत अगर ईरान और इजरायल के बीच बढ़े तनाव को कम नहीं किया जा सका, तो कच्चे तेल की कीमतों पर सीधा असर पड़ना तय है. युद्ध छिड़ने या तनाव बढ़ने की स्थिति में कच्चा तेल लंबे समय के बाद फिर से 100 डॉलर प्रति बिलियन डॉलर के स्तर को पार कर सकता है. कच्चा तेल की कीमतों में तेजी आने से भारत को ज्यादा नुकसान हो सकता है, क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए लगभग 90 फीसदी कच्चा तेल अन्य देशों से खरीदता है.
डीजल-पेट्रोल पर ये हो सकता है असर
कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर के पार निकलने से भारत में आम लोगों को भी नुकसान हो सकता है. अगर कच्चा तेल तेज होता है तो भारत में डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ सकती हैं. ऐसे में चुनावी सीजन के दौरान डीजल-पेट्रोल के मामले में आम लोगों को जो राहत मिली, वह कुछ ही दिनों में गायब हो सकती है