हाथरस की घटना ने लोगों को हतप्रभ कर रखा है. पर ये हादसा पहली बार नहीं हुआ
हाथरस जैसी घटना अपने आप में पहली बार नहीं हुई है इस तरीके की घटनाएं पहले भी होती रही हैं जहां भीड़ बेकाबू हो जाती है
हाथरस की घटना ने लोगों को हतप्रभ कर रखा है. पर ये हादसा पहली बार नहीं हुआ है. इस तरीके के बड़े कार्यक्रम, रेलिया में कई बार भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाता है और स्थितियां बेकाबू हो जाती हैं. हाथरस जैसी घटना अपने आप में पहली बार नहीं हुई है इस तरीके की घटनाएं पहले भी होती रही हैं जहां भीड़ बेकाबू हो जाती है, और मासूम लोग भीड़ का हिस्सा बनकर अपनी जान गंवा देते हैं.अक्सर इन हादसों पर बड़ा सवाल तब खड़ा होता है, जब इस तरीके के बड़े कार्यक्रमों में भीड़ जुटाने वाले लोगों पर क्या कार्रवाई हुई हैं? इन जगहों के जिम्मेदार पुलिस और प्रशासन ऐसे कार्यक्रमों के पहले उचित व्यवस्थाएं क्यों नहीं कर पाता?
चारबाग स्टेशन पर जब मची थी भगदड़
2002 में लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी की एक रैली के बाद लखनऊ का चारबाग स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी. इस रैली के बाद हजारों की संख्या में स्टेशन पहुंचे लोगों को अलग-अलग ट्रेनों से अपने-अपने घर जाना था पर इसी दौरान अचानक से कई ट्रेनों का प्लेटफार्म बदल दिया गया. जिस कारण प्लेटफार्म बदलने से स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी और इस हादसे में 12 लोग की जान चली गई थी और 20 से अधिक लोग घायल हुए थे.
2004 में साड़ी बंटने के दौरान हुई थी भगदड़
पूर्व मंत्री और भाजपा नेता स्वर्गीय लाल जी टंडन के जन्मदिन के अवसर पर 12 अप्रैल 2004 को लखनऊ के महानगर के चंद्रशेखर आजाद पार्क में साड़ी वितरण कार्यक्रम रखा गया था, इस कार्यक्रम में हजारों की भीड़ बेकाबू हो गई थी और इसमें 22 महिलाओं की मौत हो गई थी. इस कार्यक्रम में करीब 5000 लोगों की व्यवस्था थी जबकि इससे कहीं अधिक महिलाएं यहां पहुंच गई थी.
2016 में कांशीराम की पुण्यतिथि पर हुई थी भगदड़
लखनऊ के इको गार्डन में 9 अक्टूबर 2016 को कांशीराम की दसवीं पुण्यतिथि के अवसर पर रैली रखी गई थी . इस रैली में भी भगदड़ मच गई थी. इस हादसे में तीन महिलाओं की मौत हो गई थी और 22 से अधिक लोग घायल हुए थे.बड़े कलाकारों के कार्यक्रमों में भी भीड़ बेकाबू होने पर कई बार लोग चोटिल हुए हैं.