पुलिस की गोलियों से बचने के लिए खपरैल में छिप गया
अयोध्या में हजारों कारसेवकों का जत्था हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच चुका था।
खैराबाद/सीतापुर। दो नवंबर 1990 की सुबह का समय था। अयोध्या में हजारों कारसेवकों का जत्था हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच चुका था। उमा भारती के नेतृत्व में लाल कोठी की सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे। वहां से राम जन्मभूमि ज्यादा दूर नहीं थी। सरकारी फरमान था, कि कारसेवक किसी भी कीमत पर ढांचे तक नहीं पहुंचने चाहिए। अचानक पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की तड़तड़ाहट से अयोध्या दहल उठी इस गोलीकांड में दर्जनों कारसेवकों की मौत हो गई। कारसेवकों में भगदड़ मच गई। खैराबाद के बाजदारी टोला निवासी अयोध्या मौर्य आपबीती सुनाते हुए मानों उसी दौर में खो गए हों। बूढ़ी आंखें भर आईं। भावुक होकर बोले कि देखते ही देखते सड़क व गली खून से लाल हो गई। पुलिस की गोलियों से बचने के लिए गली में लगे खपरैल के ढेर का सहारा लिया। अपने और कुछ अन्य साथियों ने खपरैल ओढ़ ली। कुछ देर बाद वाहनों में शव भरकर सरयू में फेंके जाने लगे।अयोध्या और उनके दो साथी कमाल सरांय के आशुतोष मिश्र उर्फ भुल्लन तथा विष्णु चक्रवर्ती किसी तरह बचते-बचाते वापस घर लौट पाए थे। अयोध्या ने बताया कि अक्तूबर 1990 के आखिरी सप्ताह में तीनों लोगो ने अयोध्या में राम काज के लिए जाने मन बनाया था। इस बीच रेडियो पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का बयान सुना कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इससे सीने में जल रही राम काज की लौ धधक उठी।उस वक्त ट्रेन, बस रद्द थी। राम भक्तों को जेलों मे ठूंसा जा रहा था। पुलिस की नजरों से छिपकर तीनों खैराबाद से एक ट्रक में सवार होकर अयोध्या के लिए कूच कर गए। लखनऊ पहुंचे। हर तरफ कर्फ्यू लगा था। रात में एक मंदिर में विश्राम किया। सुबह एक वाहन से देवा शरीफ पहुंचे। फिर पैदल देर रात करनैलगंज पहुंच गए। वहां पर एक मंदिर में रुके। वहां सभी लोगों ने अयोध्या जाने से मना किया। हम लोगों ने हिम्मत नहीं हारी।
पैदल चलते हुए तीसरे दिन की सुबह अयोध्या पहुंच गए। वहां भी कर्फ्यू लगा हुआ था। उसी समय धरपकड़ शुरू हो गई और हम तीनों साथी एक दूसरे बिछड़ गए। छिपते-छिपाते सरयू नदी को पार करके छावनी पहुंच गए। वहां कार्यसेवकों ने बताया कि धर्म ध्वजा लहरा दिया गया है। ढांचा गिराना है।
छावनी में अशोक सिंघल, विनय कटियार और उमा भारती ने कारसेवकों के साथ बैठक की। सभी से परिचय पूछा। वहां पर दोनों साथी मिल गए। आंसू गैस से बचाव के लिए चेहरे पर चूना लगाने को दिया गया। चेहरा ढंकने को एक-एक गमछा दिया गया। कारसेवकों की तीन टोली बन गई। एक की अशोक सिंघल, दूसरी टोली की कमान विनय कटियार और जिसमें हम शामिल थे। तीसरी टोली की कमान उमा भारती ने संभाली। सभी लोग अलग-अलग रास्तों से हनुमान गढ़ी पहुंचे।
वहां अशोक सिंघल, विनय कटियार और उमा भारती को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। फिर भी कारसेवक डटे रहे तो पुलिस ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इससे भगदड़ मच गई। गलियां व सड़क खून से लाल हो गईं। ऐसा मंजर पहली बार देखा था, ह्रदय रो पड़ा। हर तरफ कोहराम मचा हुआ था। अयोध्या बताते हैं, कि हम लोग बचते-बचाते किसी तरह अयोध्या स्टेशन गए। पैदल ही रेलवे लाइन के किनारे-किनारे चलकर फैजाबाद पहुंचे। फिर एक वाहन से लखनऊ और ट्रेन से खैराबाद पहुंचे।पावन अवसर का साक्षी बनने को प्रभु श्रीराम ने रखा जीवितअयोध्या मौर्य ने कहा कि सैकड़ों कारसेवकों की शहादत के बाद प्रभु श्रीराम टेंट से निकलकर अपने महल में पधारेंगे। मेरे दो साथी आशुतोष मिश्र और विष्णु चक्रवर्ती आज इस दुनिया में नही है, पर यह सौभाग्य का दिन प्रभु ने हमें दिखाने के लिए जीवत रखा है।जब सरयू मां ने दिया रास्ता अयोध्या मौर्य जब साथियों समेत सरयू नदी पार करने लगे तो पानी की उन्हें थाह नहीं थी। राम का नाम लेकर नदी में उतर गए। वह बताते हैं, कि जल अपनेआप कम हो गया। वह लोग सरयू को पार करने के बाद मुड़कर देखते हैं तो फिर वैसे जल स्तर पहले की तरह बढ़ गया। यह दृश्य देखकर सभी आश्चर्य चकित रह गए। सरयू मां के चरण स्पर्श किए। उन्होंने कहा यह दृश्य मेरे जीवन का अद्भुत व अलौकिक दृश्य था।