अलीगढ़

जैन मंदिर में उपवास के बाद हुआ जैन संत का पारणा

खिरनी गेट स्थित श्री लख्मीचंद पांड्या खण्डेलवाल दिगम्बर जैन ट्रस्ट परिसर मे जैन का उपवास के 4 है दिन बाद जल ग्रहण किया

खिरनी गेट स्थित श्री लख्मीचंद पांड्या खण्डेलवाल दिगम्बर जैन ट्रस्ट परिसर मे जैन का उपवास के 4 है दिन बाद जल ग्रहण किया। मुनि सेवा समिति के अध्यक्ष प्रधुमन कुमार जैन ,मंत्री विजय कुमार जैन , कोषाध्यक्ष नरेंद्र कुमार जैन एवं मीडिया प्रभारी मयंक जैन ने संयुक्त रूप से जानकारी दी की जैन मंदिर मे मुनि श्री 108 स्वयंभू सागर महाराज एवं पाठशाला प्रेरक बालमुनि श्री 108 अनुकरण सागर महाराज चातुर्मास हेतु विराजमान है। मुनि श्री अनुकरण सागर महाराज सोलहकारण उपवास कर रहे है। जोकि एक महीने तक चलेंगे जिसमे बीच बीच मे मुनिश्री केवल जल ग्रहण करेंगे।
इतनी भीषण गर्मी मे कोई बिना भोजन ,बिना पानी पिए कैसे रहे सकता है किन्तु जैन संत ने अपनी तपस्या के चलते 4 दिन बाद केवल जल ग्रहण किया।
जैन धर्म ,अहिंसा का प्रतिपालन करने वाला यह धर्म जितना शांत, सौम्य व शीलवान है, इस धर्म के नियम उतने ही कठिन हैं। जैन साधुओं की आहार चर्या व नियम, उपवास आदि अचंभित करने वाले है। अगर जैन संतों को अपने संकल्प अनुसार भोजन नहीं मिला तो वे उपवास कर कई दिनों तक भूखे रहकर ही साधना में लीन रहते हैं। जैन धर्म की विशेषता है कि यहां संत आहार स्वाद के लिए नहीं बल्कि जीवन जीने मात्र के लिए करते हैं ताकि उनकी तपस्या व साधना में किसी तरह की बाधा, विकार उत्पन्न न हो। दरअसल, जैन मुनि 24 घंटे में सिर्फ एक बार भोजन करते हैं और जल ग्रहण करते हैं। इसका भी अपना तय समय है। जैन साधु की आहारचर्या को सिंहवृत्ति कहते हैं। साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते हैं, उसी में भोजन करते हैं। यदि अंजुली में भोजन के साथ चींटी, बाल अथवा कोई अपवित्र पदार्थ या अन्य कोई जीव आ जाए तो उसी समय भोजन लेना बंद कर देते हैं। अपने हाथ छोड़ देते हैं। उसके बाद पानी भी नहीं पीते। इस विधि से भोजन करने से साधु की भोजन के प्रति आशक्ति दूर होती है।
संकल्प लेकर मंदिर से निकले, थाली में वह चीज नहीं हुई तो निराहार लौट जाते हैं संत
जैन साधु संत जब आहार (भोजन) के लिए निकलते हैं तो जिन प्रतिमा के दर्शन कर विधि (नियम) लेकर निकलते हैं। विशेष मुद्रा लिए निकलते है। पडग़ाहन में श्रद्धालुओं द्वारा शब्दों का उच्चारण किया जाता है। उस दौरान श्रद्धालु के पास नारियल, कलश, लौंग,फल होने का नियम लिया जाता है। नियम के अनुसार यह वस्तु नहीं दिखने पर साधू बिना आहार लिए वापस आ जाते हैं। उसके बाद दूसरे दिन फिर वहीं नियम के साथ आहार के लिए वापस निकलते है। यदि नियम फिर भी नहीं मिलता है तो आहार के लिए घर में प्रवेश नहीं करते हैं। फिर अगले दिन का इंतजार किया जाता है।
उपवास के दौरान भी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं
उपवास के बाद भी मुनिश्री की दिनचर्या आम दिनों जैसी होती है वे सुबह 4.30 बजे से प्रतिक्रमण, स्वाध्याय उसके बाद अभिषेक , शांतिधारा कराना 8.30 बजे से 10 बजे तक प्रवचन करते हैं ,दोपहर मे बच्चों की धार्मिक कक्षा, शाम को आरती,प्रवचन आदि ।

JNS News 24

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