नैमिषारण्य में भी है भगवान राम की अयोध्या
88 हजार ऋषि मुनियों की पावन तपोभूमि नैमिष में भी भगवान राम की अयोध्या है।
नैमिषारण्य/सीतापुर। 88 हजार ऋषि मुनियों की पावन तपोभूमि नैमिष में भी भगवान राम की अयोध्या है। इसे छोटी अयोध्या अथवा अयोध्या हार के नाम से जाना जाता है। प्रभु श्रीराम जब अयोध्यावासियों के साथ नैमिष आए थे, तब इसी स्थान पर विश्राम किया था। यहां राम दरबार के अलावा हनुमान जी का मंदिर है।रामलला का नैमिषारण्य से गहरा नाता है। यहां की पावन धरा भगवान राम के आगमन का आध्यात्मिक इतिहास भी संजोए है। प्रभु श्रीराम के चरण रज से नैमिष का कण-कण सुशोभित है। कालीपीठाधीश गोपाल शास्त्री बताते हैं, कि भगवान राम अयोध्यावासियों के साथ नैमिषारण्य आए थे। गोमती के तट पर जिस स्थान पर प्रभु श्रीराम ने विश्राम किया, वह अयोध्या के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में इसे अयोध्या हार भी कहते थे।
नैमिषारण्य की अयोध्या में हनुमान जी की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर के अंदरूनी हिस्से में लाल, नीले व सफेद रंगों से बेहतरीन नक्काशी बनी हुई है। प्राचीन होते हुए भी यह आज भी बेहद आकर्षक है। मंदिर के गुंबद में शेर, चीता एवं विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। इसके पड़ोस में राम दरबार है। भगवान राम के चरण जहां-जहां पड़े हैं, उनके प्रमाण आज भी नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा मार्ग की परिधि में मिलते हैं ।परिक्रमा पथ पर गूंजती है रामधुननैमिष की 84 कोसीय परिक्रमा करने प्रभु श्रीराम भी आ चुके हैं। भगवान राम के आगमन के बाद यहां परिक्रमार्थियों को रामादल कहा जाने लगा। हर साल फाल्गुन मास में होने वाली 84 कोसी परिक्रमा पथ पर रामधुन की स्वरलहरियां गुंजायमान होती हैं। देश-विदेश से आने वाले परिक्रमार्थी बोल कड़ाकड़ सीताराम, जय श्रीराम का उद्घोष करते हुए आस्था की डगर पर आगे बढ़ते हैं।