धार्मिक

प्रेम’ ऐसा मोह का बंधन है जिससे हर कोई बंधा है. प्रेम, आकर्षण, समर्पण, लगाव कुछ भी हो सकता है

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

 वैलेंटाइन वीक यानी प्यार का सप्ताह, जिसकी शुरुआत 7 फरवरी से हो चुकी है और 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे मनाया जाता है. प्रेमी जोड़े और प्यार करने वालों के लिए यह दिन खास होता है. ‘प्रेम’ ऐसा मोह का बंधन है जिससे हर कोई बंधा है. प्रेम, आकर्षण, समर्पण, लगाव कुछ भी हो सकता है और प्रेम किसी से भी हो सकता है. मां पार्वती का शिवजी के प्रति प्रेम, मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्त का अपने आराध्य के प्रति प्रेम.. प्रेम की परिभाषा अनंत है. प्रेम मुक्ति भी है और बंधन भी, प्रेम पाना भी है और खोना भी. प्रेम के इसी मायने को संत कबीरदास अपने दोहे के माध्यम से बखूबी समझाते हैं.संत कबीर दास एक संत, महान विचारक और समाज सुधारक थे. उन्होंने अपने दोहे के माध्यम से जीवन जीने की सीख दी. उनके दोहे अत्यंत सरल और अर्थपूर्ण हैं. कबीरदास ने प्रेम को लेकर भी कई दोहे लिखे. ऐसे में जब प्यार का सप्ताह चल रहा है तो चलिए जानते हैं प्रेम पर कबीर के दोहे और उनके अर्थ-

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआपंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम कापढ़े सो पंडित होय।

अर्थ- बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ कर संसार में कितने लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, लेकिन कोई ज्ञानी न हो सका. यदि कोई प्रेम का केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले तो वह वास्तविक रूप से प्रेम को समझकर सच्चा ज्ञानी हो जाता है.

प्रेत न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई।
राजा परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाई।।
अर्थ: प्रेम किसी खेत में नहीं उगता है और ना ही किसी बाजार में बिकता है. राजा हो या फिर प्रजा जो लोग प्रेम पाना चाहते हैं, उन्हें त्याग और समर्पण करना ही पड़ता है.

जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं. प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं
अर्थ: जब इस हृदय में “मैं” यानी मेरे अंहकार का वास था तब इसमें ‘हरि’ नहीं थे और अब जब इसमें हरि का वास है तो इसमें से मेरे अहंकार का नाश हो चुका है. यह ह्रदय रूपी प्रेम गली इतनी संकरी है, जिसमें दोनों में से सिर्फ एक ही समा सकते हैं.

प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय ।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ॥
अर्थ: जो प्रेम का प्याला पीता है वह अपने प्रेम के लिए बड़ी से बड़ी आहूति देने से भी नहीं हिचकता, यहां तक की वह दक्षिणा के रूप में अपना सिर भी न्योछावर करने को तैयार रहता है. लेकिन लालची न तो अपना सिर दे सकता है और अपने प्रेम के लिए कोई त्याग करता है.

कबीर यहु घर प्रेम का, खाला का घर नाँहि।
सीस उतारै हाथि करि, सो पैठे घर माँहि॥

अर्थ:
 परमात्मा का घर तो प्रेम का घर है, यह कोई मौसी का घर नहीं जहां मनचाहा प्रवेश मिल जाए. जो साधक अपने सीस को उतार कर अपने हाथ में ले लेता है वही इस घर में प्रवेश पा सकता है.

1. प्यार क्या है?

प्रेम प्रेम सब कोई कहै, प्रेम न जाने कोय।
जिस रस्ते मुक्ति मिले, प्रेम कहावे सोय॥

अर्थ: प्यार की बात तो सभी करते हैं लेकिन असल में उसके वास्तविक रूप को कोई नहीं समझ पाता. प्रेम का सच्चा मार्ग तो वही है जहां जीवन बंधनों से मुक्त हो जाता है.

अर्थ: जब तक मन में कुछ खोने का डर है, तो समझ लेना प्यार अभी बहुत दूर है.

JNS News 24

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