एम ने एफएमडी टीकाकरण अभियान का किया शुभारंभ
45 टीमें जिले में 30 अप्रैल तक 11.28 लाख पशुओं का करेंगी टीकाकरण
अलीगढ़ 15 मार्च 2024 (सू0वि0): जिलाधिकारी विशाख जी0 द्वारा कलैक्ट्रेट से जिले में खुरपका-मुँहपका रोग के नियंत्रण के लिए एफएमडी टीकाकरण अभियान का टीकाकरण टीमों को हरी झण्डी दिखाकर रवाना कर शुभारंभ किया गया। जिलाधिकारी ने पशुपालकों से अनुरोध किया है वह अपने गौवंशीय, महिषवंशीय पशुओं में एफएमडी वैक्सीन अवश्य लगवायें, जिससे कि आपका पशुधन रोग मुक्त रहे। उन्होंने बताया कि टीकाकरण पूर्ण रूप से निःशुल्क है और पशुपालन विभाग की टीम द्वारा आपके द्वार पर जाकर पशुओं में टीकाकरण एवं टैगिंग का कार्य किया जायेगा। सभी पशुपालक राष्ट्रीय महत्व के टीकाकरण कार्यक्रम में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करें।अपर निदेशक पशुपालन डा0 योगेन्द्र सिंह पवार ने बताया कि जिले में किये जा रहे टीकाकरण कार्य में 49 टीमें लगाई गई है जिसमें प्रत्येक ग्राम सभा में टीकाकरण के लिए वैक्सीनेटर एवं टैगिंग सहायक लगाकर कुल 11.28 लाख पशुओं में टीकाकरण कार्य 45 दिवस में किया जायेगा, जोकि 30 अप्रैल तक चलेगा। 20 वीं पशुगणना के अनुसार अलीगढ़ में 311298 गौवंशीय तथा 942498 महिषवंशीय पशु हैं। खुरपका-मुहपका टीकाकरण 4 माह से छोटे पशु तथा 8 माह से अधिक गर्भित पशुओं में नहीं किया जाता है। एक टीम में उप मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी या पशुचिकित्सा अधिकारी, पशुधन प्रसार अधिकारी, ड्रैसर एवं वैक्सीनेटर होगा जो पशुपालकों के द्वार पर जाकर पशुओं मे निःशुल्क टीकाकरण करेगी। टीकाकरण के उपरान्त टीकाकरण का विवरण भारत पशुधन एप पोर्टल पर भी अपलोड किया जायेगा। उन्होंने बताया कि वैक्सीन के रखरखाव के लिए पशुचिकित्सालय सदर अलीगढ़ पर 01 कोल्ड रूम की स्थापना की गई है। कोल्ड चेन मेन्टेन करते हुए वैक्सीन विकास खण्ड स्तरीय पशुचिकित्सालयों पर भेजी जायेगी जहाँ से टीमों के द्वारा विधिवत कोल्डचेन मेन्टेन करते हुए टीकाकरण किया जायेगा।
मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ0 दिनेश तोमर ने खुरपका-मुहपका रोग के सम्बन्ध में बताया कि खुरपका-मुहपका (एफएमडी) रोग गाय तथा भैसों में होने वाला एक विषाणुजनित संक्रामक रोग है। यह रोग स्वस्थ पशु के बीमार पशु के सीधे सम्पर्क में आने, पानी, घास, दाना, बर्तन, दूध निकालने वाले व्यक्ति के हाथों से, हवा से और लोगों के आवागमन से फैलता है। इस रोग के विषाणु बीमार पशु की लार, मुह, खुर एवं थन में पड़े फफोलो में अधिक संख्या में पाये जाते है। उन्होंने खुरपका-मुहपका रोग के लक्षण की जानकारी देते हुए बताया कि इसमें पीडित पशु को तेज बुखार हो जाता है। मंुह से अत्यधिक लार टपकती है। जीभ एवं तलवे पर छाले उभर जाते है जो बाद में फटकर घाव में बदल जाते है। जीभ की सतह निकलकर बाहर आ जाती है एवं थूथनों पर छाले उभर आते है। खुरो के बीच में घाव हो जाते है जिसके कारण पशु लगडाकर चलता है या चलना बन्द कर देता है। भारवाहक पशुओं की भार ढोने की क्षमता कम हो जाती है। दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन 70 प्रतिशत तक कम हो जाता है।