सूर्य जिस दिन धनु राशि से निकल मकर राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है.
अलग-अलग रीतियों के साथ यह पर्व मानाया जाता है
संक्रांति तो प्रत्येक मास में आती है लेकिन मकर संक्रांति वर्ष में एक ही बार आती है जोकि सबसे विशेष मानी जाती है. व्रत चंद्रिका उत्सव अध्याय क्रमांक 34 के अनुसार, संस्कृत भाषा में संक्रान्ति अथवा संक्रमण का अर्थ एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना होता है. अतः मकर नाम की राशि में सूर्य के प्रवेश करने को ‘मकर संक्रान्ति’ कहते हैं.विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर प्रदक्षिणा करती रहती है. सूर्य के भ्रमण करने का जो मार्ग है उसे क्रान्तिवृत्त कहते हैं. प्रारम्भ से अन्त तक इस क्रान्तिवृत्त के बारह विभाग किए गए हैं और प्रत्येक विभाग को एक-एक राशि का नाम दिया गया है. इस प्रकार हमारे यहां बारह राशि है- (1) मेष, (2) वृषभ, (3) मिथुन, (4) कर्क, (5) सिंह, (6) कन्या, (7) तुला, (8) वृश्चिक, (9) धनु, (10) मकर, (11) कुम्भ और (12) मीन.जब पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है तब उसे इस काम में पूरा एक वर्ष लगता है, जिसका बारहवां भाग एक मास होता है. जिस प्रकार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है उसी प्रकार चन्द्रमा पृथ्वी की प्रदक्षिणा करता है. उसकी एक प्रदक्षिणा समाप्त होने में एक मास लगता है. इस मास को चान्द्रमास कहते हैं. जिस चान्द्रमा में सूर्य का संक्रमण क्रान्तिवृत्त के मेष भाग पर होता है उसे चैत्रमास तथा वृष के संक्रमण को वैशाख कहते हैं. इसी प्रकार से पौष-मास के चान्द्रमास में जो संक्रमण होता है उसे ‘मकर संक्रांति’ कहते हैं.वैसे तो यह संक्रांति प्रति मास में होती है परन्तु मकर और कर्क राशि का संक्रमण बड़े महत्व का समझा जाता है. ये दोनों संक्रमण छः छः मास के अन्तर पर होत है. इसमें मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरायण होने को तथा कर्क संक्रान्ति दक्षिणायन होने को सूचित करती है. इन छः मास के काल को अयन कहते हैं. उत्तरायण काल में सूर्य उत्तर दिशा की ओर झुकता हुआ दिखाई पड़ता है और दक्षिणायन में दक्षिण दिशा की ओर. उत्तरायण की दशा में दिन बड़ा और रात छोटी होती है और दक्षिणायन की अवस्था में रात बड़ी और दिन छोटा होता है.
मकर संक्रांति व्रत विधि :–
मकर संक्रांति के पहले दिन एक समय ही भोजन करना चाहिए तथा मकर संक्रांति के प्रातःकाल निलों से तैलाभ्यङ्ग स्नान करना चाहिए. लिखा भी है कि:– पूर्वेद्यरेछभुक्तेन दन्तधावन-पूर्वकम्सं। क्रान्ति-वासरे प्राप्ते तिलैः स्नानं समाचरेत्॥ (संक्रांति के दिन तिल का भोजन एवं स्नान श्रेष्ठ बतलाया है).मत्स्य पुराण 98.3–6 अनुसार, सूर्य-संक्रान्ति के दिन भूमि पर चन्दन से कर्णिकासहित अष्टदल कमल की रचना करें और उस पर सूर्य का आवाहन करें. कर्णिका में ‘सूर्याय नमः’, पूर्वदलपर ‘आदित्याय नमः’, अग्निकोणस्थित दलपर ‘उष्णार्चिषे नमः’, दक्षिणदलपर ‘ऋमण्डलाय नमः’, नैऋत्यकोणवाले दलपर ‘सवित्रे नमः’, पश्चिमदलपर ‘तपनाय नमः’, वायव्यकोणस्थित दलपर ‘भगाय नमः’, उत्तरदलपर ‘मार्तण्डाय नमः’ और ईशानकोण वाले दल पर ‘विष्णवे नमः’ से सूर्यदेव को स्थापित कर उनकी बारंबार अर्चना करें. तत्पश्चात् वेदी पर भी चन्दन, पुष्पमाला, फल और खाद्य पदार्थों से उनकी पूजा करनी चाहिए.
- मकर संक्रांति में तिल का बड़ा महत्व है. इस दिन तिल ही से स्नान करे. तिल का उबटन लगावें, तिल का हवन, तिल का जल, तिल का ही भोजन तथा दान, ये छः कर्म तिल ही से होने चाहिए. क्योंकि इससे पाप नष्ट होता हैं.
- पद्म पुराण खण्डः 6 (उत्तरखण्डः) 42.21 अनुसार:– तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।तिलदाता च भोक्ता च षट्तिलाः पापनाशनाः। (तिल दान पापों का नाश करता है).
- चन्दन से अष्टदल का कमल बनाकर उसमें सूर्यनारायण का आवाहन करना चाहिए और यथाविधि पूजन करें. इस महीने में घी और कम्बल के दान देने का बड़ा माहात्म्य लिखा है. ‘शिव रहस्य’ में लिखा है कि :- माघे मासि महादेव ! यः कुर्यात् घृत-कम्बलम् । स भुक्त्वा सकलान् भोगान्, अन्ते मोक्षं च विन्दति ॥ (माघ मास में महादेव! वह जो घी और कम्बल बनाता हो, वे सभी प्रकार के सुखों को भोगकर अंत में उसे मुक्ति की प्राप्ति होती है).
- मकर संक्रांति को उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में ‘खिचड़ी’ के नाम से पुकारते हैं. इसका कारण यह है कि इस दिन लोग गंगा में स्नान कर खिचड़ी ही खाते हैं, वर्तमान रूप में खिचड़ी ही दान देते हैं. गंगा में नहाना तथा खिचड़ी खाना यही आज के दिवस किया जाता है. आज के दिवस गंगा नहाने के लिये यात्रियों की बड़ी भीड़ होती है तथा तिल खाने का भी माहात्म्य समझा जाता है.
- महाराष्ट्र में सौभाग्यवती स्त्रियों अपनी सहेलियों को हल्दी, तिल और गुड़ देती हैं. बंगाल प्रान्त में भी स्नान तथा तिल दान की प्रथा है. इस प्रकार ज्ञात होता है कि प्रत्येक प्रान्त में दान आदि की स्थानीय प्रथा विभिन्न हैं.
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का महत्व
गुजात में आज के दिवस पतंग उड़ाने का रिवाज है, वहां के लोग इसे स्वतंत्रता का प्रतीक मानते हैं और हर्षोल्लास से पतंग उड़ाकर इस पर्व को मनाते हैं. गंगासागर में मकर संक्रांति का बड़ा भारी मेला लगता हैं. वहां इस अवसर पर समुद्र में स्नान करने के लिए हजारों की संख्या में लोग एकत्रित होते हैं तथा वहां के जन समुदाय की भक्ति और श्रद्धा का दृश्य देखते ही मन प्रफुल्लित हो जाते हैं. अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग रीतियों के साथ मकर संक्रांति का पर्व मानाया जाता है. इसे ही ‘विविधता में एकता’ कहते हैं.