धार्मिक

मातृ देवो भव:’ यानी मां देवताओं से भी बढ़कर होती है. मां जननी है, यानी जन्म देने वाली, जिसका स्थान संसार में सबसे ऊपर है.

प्रेम, करुणा, भाव और वात्सल्य का दूसरा रूप यदि कोई है तो वह ‘मां’ ही है. मां का अपनी संतान के साथ खास लगाव होता है

तैतरीय उपनिषद में लिखा गया है- ‘मातृ देवो भव:’ यानी मां देवताओं से भी बढ़कर होती है. मां जननी है, यानी जन्म देने वाली, जिसका स्थान संसार में सबसे ऊपर है. प्रेम, करुणा, भाव और वात्सल्य का दूसरा रूप यदि कोई है तो वह ‘मां’ ही है. मां का अपनी संतान के साथ खास लगाव होता है.हम चाहे कितने भी बड़े क्यों न हो जाए, लेकिन जब भी हम किसी परेशानी में होते हैं या अकेला महसूस करते हैं तो आज भी ऐसा लगता है कि संसार के सभी सुखों का त्यागकर बस मां के आंचल से लिपट जाएं और फिर से बच्चा बन जाएं. क्योंकि मां का आंचल ही है जहां सबसे अधिक सुकून है और यह एक बच्चे के लिए दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह है.मेरी दुनिया है मां तेरे आंचल मेंमां का आंचल बच्चे के लिए दुनिया के सब सुखों से बढ़कर है. इसलिए तो मां के आंचल की आड़ से जब नन्हे बच्चे देखते हैं तो उन्हें यह दुनिया रंगीन नजर आती है.मां के आंचल का कोना हमारे लिए कभी गुल्लक बन जाया करता था तो कभी तिजोरी, जिसमें बंधे पैसे ऐसा खजाना होते थे, जिससे दुनिया की सारी खुशियां खरीदी जा सकती है.बच्चे की खुशियों के लिए मां अपना आंचल भगवान के समक्ष फैलाती है. इसलिए तो मां का आंचल संतान के लिए कभी छोटा नहीं पड़ता. मां के आंचल, लाड़, प्यार, ममता और दुलार का जितना भी बखान किया जाए कम ही है. मां के आंचल और उसकी ममता का बखान केवल कविता और किताबों में ही नहीं बल्कि धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है.रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में एक प्रसंग है कि, जब माता सीता को रावण ने हरण कर लिया था तो उन्होंने अपने आभूषण साड़ी के आंचल में बांधकर ही फेंके थे, जिससे कि अगर किसी को रास्ते में आभूषण मिले तो उससे सीताजी के बारे में कुछ संकेत मिल सके.अब आप ही बताइए रामायण में सीता जी के पल्लू में आभूषणों को बांधकर फेंकना और भगवान राम द्वारा उसका बखान करना क्या आंचल की कम महत्वपूर्णता को दर्शाता है.इससे यह पता चलता है कि, ग्रंथ, काव्य और महाकाव्य सभी में ‘आंचल’ का कितना सुंदर चित्रण किया गया है. समय और परिवेश चाहे कितने भी क्यों न बदल जाएं लेकिन एक बच्चे के लिए उसकी मां का आंचल दुनिया का सबसे सुरक्षित स्थान है, जोकि संतान के लिए कभी छोटा नहीं पड़ता.मां की ममता का कोई मोल नहीं है. मां के इसी पावन रिश्ते को दर्शाता है मदर्स डे या मातृत्व दिवस. मातृत्व प्रेम और माताओं के सम्मान में हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है, जोकि इस साल 12 मई 2024 को है. हिंदू धर्म के वैदिक ग्रंथ, शास्त्र और वेद-पुराण में विशेषत: मां की महिमा और ममता की विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है. मां को माता, आई, मम्मी, माई, महतारी, अम्मा, मातृ, अम्मी, जननी, जन्दात्री, जीवनदायिनी, जननी, धात्री, प्रसू जैसे अनेकों नामों से संबोधित किया जाता है.विभिन्न संस्कृतियों में मां को पुकारने का तरीका भले ही अलग-अलग हो. लेकिन मां और संतान का रिश्ता हमेशा ममता और वात्सल्य से भरा होता है.मां का प्यार, दुलार, ममता सब अतुलनीय है. इसलिए भगवान श्रीराम भी रामायण में अपने श्रीमुख से मां को स्वर्ग से भी ऊपर मानकर कहते हैं-जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
यानी- जननी (मां) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है.वैसे तो मां की ममता का शब्दों में बखान करना संभव नहीं है. क्योंकि मां ऐसा आलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही शरीर का रोम-रोम पुलकित हो जाता है और हृदय में भावनाओं के अनहद ज्वार उठने लगते हैं. केवल मां शब्द के उच्चारण मात्र से ही शरीर की पीड़ा खत्म हो जाती है, क्योंकि मां की धन्य धारा से ही तो समस्त सृष्टि का सृजन हुआ है.महाभारत में यक्ष धर्मराज युधिष्ठर से पूछते हैं कि, भूमि से भी अधिक भारी क्या है. तब युधिष्ठिर कहते हैं- ‘मता गुरुतरा भूमेरू।’ यानी माता इस भूमि से भी अधिक भारी है.

महर्षि वेदव्यास मां का वर्णन करते हुए लिखते हैं-

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।

यानी- मां के समान संसार में कोई छाया नहीं, मां के समान कोई सहारा नहीं. मां के समान रक्षक नहीं और मां के समान कोई प्रिय चीज भी नहीं है.

शतपथ ब्राह्मण की सूक्ति के अनुसार- अथ शिक्षा प्रवक्ष्याम: मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरुषो वेद:।

अर्थ है- जब तीन उत्तम शिक्षक, एक मां दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तभी मनुष्य ज्ञानवान हो सकता है.

रामायण की पांडूलिपियों में स्थान पर प्रभु श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं –

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥

अर्थ- लक्ष्मण! भले ही यह लंका सोने से निर्मित हो, लेकिन फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं. क्योंकि जननी (मां) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है.

मां के गुणों का उल्लेख कुछ प्रकार से भी मिलता है-

प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।

यानी, वह माता धन्य है, जोकि गर्भावान से लेकर विद्या के पूर्ण होने तक सुशीलता से उपदेश करे.

आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम्। 
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने।।

यानी, जब परेशानी आने वाले होती है, तब हितकारी भी उसमें कारण बन जाता है. एक बछड़े को बांधने के लिए मां की जांघ ही खम्भे का कार्य करती है.

अकाल मृत्यु को भी टाल सकती है मां की दुआएं

हर मां अपनी संतान को दुआएं देती हैं. निश्चल भाव और हृदय से मां द्वारा दी गई दुआओं में इतनी शक्ति होती है कि, उससे अकाल मृत्यु तक टल सकती है.

मां के संस्कार, आशीष और दुआ से ही व्यक्ति सत्मार्ग पर चलता है और महानता के शिखर को छूता है. इसलिए वह जीवन नीरस है, जिसमें मां का आशीर्वाद और नारी चेतना का सानिध्य न हो.

इसलिए मदर्स डे पर इस साल मां को तोहफे देने और स्पेशल फील कराने के साथ ही इस बात का प्रण लें कि, हम सभी मां को प्रेम करें, उन्हें सम्मान दें और उन्हें कभी कोई दुख न पहुंचाएं.

JNS News 24

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