नंदी को शिव जी का सबसे प्रिय गण माना जाता है. हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं के वाहन हैं,
8 मार्च 2024 को महाशिवरात्रि का पर्व है, चारों ओर शिवमय का वातावरण है,
नंदी को शिव जी का सबसे प्रिय गण माना जाता है. हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं के वाहन हैं, नंदी को भोलेनाथ का वाहन माना जाता है. शिवालय में भोलेनाथ की मूर्ति के सामने बैल रूपी नंदी जरुर विराजित होते हैं, 8 मार्च 2024 को महाशिवरात्रि का पर्व है, चारों ओर शिवमय का वातावरण है, ऐसे में आइए जानते हैं आखिर नंदी कैसे बने शिव के प्रिय वाहन.संस्कृत में ‘नन्दि’ का अर्थ प्रसन्नता या आनंद है. नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है. नंदी शिव जी के निवास स्थान कैलाश के द्वारपाल भी माने जाते हैं, और भोलेनाथ के वाहन भी. जिन्हें प्रतीकात्मक रूप से बैल के रूप में शिव मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है. शैव पंरपरा में नंदी को नंदीनाथ संप्रदाय का मुख्य गुरु माना जाता है. प्राचीन काल में चार वेदों के साथ चार अन्य शास्त्र भी लिखे गए थे – धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र. इसमें से कामशास्त्र के रचनाकार नंदी माने जाते हैं.
नंदी कैसे बने शिव की सवारी ? प्राचीन काल में ऋषि शिलाद ने शिव की कठोर तपस्या कर नंदी को पुत्र रूप में पाया था. शिलाद ऋषि ने नंदी को वेद-पुराण सभी का ज्ञान दिया. एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में दो संत पधारे. नंदी ने पिता के कहने पर उनकी खूब सेवा की. जब वे ऋषिगण जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया, लेकिन नंदी के लिए एक शब्द भी नहीं बोला.ऋषि शिलाद ने सन्यासियों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु है. बेटे के लिए ऐसी बातें सुनकर पिता ऋषि शिलाद चिंतित हो गए, तब नंदी ने उन्हें समझाते हुए कहा कि पिताजी आपने मुझे शिव जी की कृपा से पाया है, तो वो ही मेरी रक्षा करेंगे. इसके बाद नंदी ने शंकर जी के निमित्त कठोर तप किया, नंदी की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अपना वाहन बना लिया.नंदी के कानों में क्यों कहते हैं कामना ? धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव अक्सर तपस्या में लीन रहते हैं. ऐसे में नंदी भक्तों की मनोकामनाएं सुनते हैं और शिव जी तपस्या पूरी होने पर भक्तों की मनोकामनाएं उन्हें बताते हैं.शिव के प्रति नंदी का असीम प्रेम पौरणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जो समुद्र से वस्तुएं निकलीं उसे लेकर देवता और असुरों में लड़ाई होने लगी. ऐसे में शिव जी ने समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को पीकर संसार की रक्षा की थी. इस दौरान विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई थीं.जिसे नंदी ने अपनी पी लिया. नंदी का ये प्रेम और लगाव देख शिव जी ने नंदी को सबसे बड़े भक्त की उपाधी दी. साथ ही ये भी कहा कि लोग शिव जी की पूजा के साथ उनकी भी अराधना करेंगे.