हाथरस

पंडित नथाराम गौड़ जयंती: पंडित जी ने देश-विदेश में जमाई हाथरसी स्वांग की धाक

200 साल पुरानी है यह विधा,नई पीढ़ी उनके बारे में जानती तक नहीं है।

रंगमंच की दुनिया में हाथरस का नाम हाथरसी स्वांग विधा के माध्यम से देश-विदेश तक पहुंचाने वाले पं. नथाराम गौड़ की 14 जनवरी को 150वीं जयंती मनाई जाएगी, लेकिन स्वांग नौटंकी जैसी लोकधर्मी रंगमंचीय विधा अब अपनों के मध्य ही बेगानी हो गयी हैं। हर साल पं. नथाराम गौड़ की जयंती पर हाथरसी स्वांग जीवंत होता है।मध्य-एशिया, दक्षिणी-अमेरिका, वर्मा, फिज़ी, मलेशिया, रंगून, इंग्लैंड, कनाडा, मॉरीशस आदि देशों में आज भी हाथरस के पं. नथाराम गौड़ के स्वांग को पसंद किया जाता है। स्वांग को पहचान दिलाने वाले पं. नथाराम गौड़ का जन्म ब्रज की द्वार देहरी हाथरस के थाना हाथरस जंक्शन के गांव दरियापुर में 14 जनवरी 1874 में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की आयु में ही हाथरस के उस्ताद इंद्रमन का सानिध्य प्राप्त हुआ और उस्ताद मुरलीधर रॉय ने उन्हें हिन्दी, उर्दू, संस्कृत व अंग्रेजी की शिक्षा दिलाई थी। इसके साथ गायन, अभिनय, नृत्य व लेखन कला में पारंगत होकर सन 1890 के आसपास उन्होंने बुर्स अखाड़ा नामक स्वतंत्र अखाड़ा स्थापित कर इस विधा को व्यावसायिक रूप दे डाला। कालान्तर में नत्था-चिरन्जी स्वांग मंडली के नाम से स्वरचित स्वांग मन्चन कर हाथरसी स्वांग विधा से विश्व स्तर पर जनमानस को परिचित कराया। उनके लिखे लगभग 200 स्वांग आज भी पण्डित नथाराम गौड़ लोकसाहित्य शोध-संस्थान के पुस्तकालय में आज भी मौजूद हैं।

अपने ही शहर में विलुप्त हो रही विधा
पं. नथाराम गौड़ ने हाथरस जिले के नाम को विश्व स्तर पर स्थापित किया था। एक जमाना था जब उनके नाम की देश और विदेश में तूती बोलती थी, किंतु आज स्थिति यह है कि नई पीढ़ी उनके बारे में जानती तक नहीं है। हाथरस नगर पालिका के प्रयासों से अलीगढ़ रोड का नाम बदलकर अब उनके नाम पर पं. नथाराम गौड़ मार्ग हो गया है, लेकिन उन जैसे महापुरुष के सम्मान के लिए यह काफी नहीं है। अपने ही शहर में यह विधा विलुप्त होने के कगार पर हैं। हालांकि मथुरा, लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी आदि क्षेत्रों में पं. नथाराम गौड़ द्वारा लिखित स्वांग को सरकारी मंचों पर केवल थियेटर शैली में मंचन करने वाले मंडलों की अच्छी खासी संख्या है।

श्याम प्रेस में होगा स्वांग का मंचन
पं. नथाराम गौड़ की 150वीं जयंती के अवसर पर मुख्य आयोजन उनकी कर्म स्थली श्याम प्रेस में सुबह 10 बजे से आयोजित किया जाएगा। प्रथम चरण में उन्हें भावांजलि अर्पण के उपरांत इस लोककला के उन्नयन के प्रति समर्पित प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाएगा। द्वितीय चरण में सांगीत : दास्तान-ए-लैला मजनूं का मंचन डॉ. खेमचंद यदुवंशी व साथी कलाकारों द्वारा किया जाएगा।

JNS News 24

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