
अलीगढ़ : जिला कृषि रक्षा अधिकारी धीरेन्द्र सिंह चौधरी ने बताया कि जनपद में फसलों को हर वर्ष 7 से 25 प्रतिशत तक की क्षति कीट, रोग, खरपतवार, चूहे व अन्य कारणों से होती है। इनमें सबसे अधिक लगभग 33 प्रतिशत नुकसान खरपतवारों के कारण होता है, जो किसानों की उपज और मेहनत दोनों को प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जिले में खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई का कार्य अंतिम चरण में है। धान का आच्छादन क्षेत्रफल लगभग 171735 हेक्टेयर है। ऐसे में किसानों को समय रहते खरपतवार नियंत्रण के उपाय अपनाने की आवश्यकता है, जिससे उत्पादन प्रभावित न हो। सकरी पत्ती वाले: सॉवा, मकरा, मौथा, कौदों, दूबघास, जंगली धान।चौड़ी पत्ती वाल: जंगली मिर्च, पान पत्ती, फूलबूटी, साथिया, जलकुंभी, जंगली बकव्हीट।खरपतवार नियंत्रण के उपाय: श्रमिकों द्वारा खुरपी से निराई-गुड़ाई कराएं। रोपाई के 21-25 दिन बाद, संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए बिषपायरी बैक सोडियम 10 प्रतिशत एस0सी0 की 200-250 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर को लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।रोपाई के 3-5 दिन के भीतर, प्रेटिलाक्लोर 50 प्रतिशत ईसी की 1.25-1.50 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए रोपाई के 20-25 दिन बाद 2,4-डी रसायन की 625 ग्राम या मैटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 20 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। संकरी व चौड़ी दोनों प्रकार के खरपतवारों के लिए, मैटसल्फ्यूरान मिथाइल 10 प्रतिशत व क्लोरोमुरान एथिल 10 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 20 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर को 500 लीटर पानी में फ्लैटफैन नोजल से छिड़काव करें।जिला कृषि रक्षा अधिकारी, अलीगढ़ ने किसानों से अपील की है कि वे समय पर खरपतवार नियंत्रण के उपाय अपनाएं, ताकि उत्पादन में गिरावट न आए और आर्थिक हानि से बचा जा सके।