धार्मिक

मां सिद्धिदात्री की कथा और पूजा आराधना विधि

नवमी पर नवरात्रि का समापन होता है, साथ ही इस दिन राम नवमी का त्योहार भी मनाया जाता है। मां सिद्धिदात्री अष्ट सिद्धि से युक्त हैं। मान्यता है कि नवरात्रि के आखिरी दिन दुर्गा नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने वालों समस्त सिद्धियों का ज्ञान प्राप्त होता है, बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है। गंधर्व, किन्नर, नाग, यक्ष, देवी-देवता और मनुष्य सभी इनकी कृपा से सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। इस दिन माता की पूजा के बाद हवन, कन्या पूजन किया जाता है और फिर नवरात्रि व्रत का पारण करते हैं।

मां सिद्धिदात्री की पूजा आराधना विधि

शारदीय नवरात्रि की नवमी पर स्नान के बाद गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें और माता को कुमकुम, रोली, अक्षत, हल्दी, गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। कन्या भोजन के लिए बनाए प्रसाद हलवा, चना, पूड़ी का प्रसाद चढ़ाएं। “ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः मंत्र का एक माला जाप करें। अब 9 कन्याओं का पूजन करें, कुमकुम का टीका लगाएं और उन्हें लाल चुन्नी ओढ़ाएं। अब कन्याओं के साथ एक बटुक को भोजन खिलाएं। दान-दक्षिणा दें और कन्याओं से आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें। पूरे विधि विधान से देवी के सहस्त्रनामों की हवन में आहुति दें और फिर नवमी तिथि समाप्त होने के बाद ही व्रत का पारण करें।

मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

मां सिद्धिदात्री की उत्पत्ती की कथा

कहा जाता है की धरा पर दैत्यों के अत्याचारों को नष्ट करने के लिए और मानव के कल्याण व धर्म की रक्षा हेतु माँ भगवती दुर्गा नवरात्रि के नवें दिन सिद्धिदात्री के रूप में उत्पन्न हुई। यह माँ का विग्रह सम्पूर्णता व समृद्धि का प्रतीक है। जो सभी प्रकार के दैत्यों का दमन करके प्रत्येक भक्त को वांछित परिणाम देने वाली हैं। प्रतिपदा से लेकर नवमी तक सम्पूर्ण अभिमानी दैत्यों का माँ भवगती दुर्गा द्वारा वध कर दिया जाता है।

पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान महादेव ने मां सिद्धिदात्री की तपस्या करके उनसे सिद्धियां हासिल कीं। माता की कृपा से उनका आधा शरीर नारी का तथा आधा पुरुष का हो गया, जिससे वे अर्द्धनारीश्वर कहलाए। मां दुर्गा का ये अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप है। शास्त्रों के मुताबिक, देवी दुर्गा का यह स्वरूप सभी देवी-देवताओं के तेज से प्रकट हुआ है।

माता की पूजा करने वाले को अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व नामक सिद्धियों की प्राप्ति हो सकती है। गंन्धर्व, देवता, यक्ष और असुर सभी मां की आराधना करते हैं। इन सिद्धियों को प्राप्त करने वाले में पूरे ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त करने की शक्ति आ जाती है। सृष्टि में उसके लिए कुछ भी शेष नहीं रह जाता। कमल पर विराजमान चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में विराजित हैं। इनके चारों हाथों में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल रहता है। सिर पर ऊंचा सा मुकूट एवं चेहरे पर मंद मुस्कान ही मां सिद्धिदात्री की पहचान है।

JNS News 24

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