विदेश

ताइवान द्वीप साउथ ईस्ट चीन के तट से 161 किमी दूर है.

अमेरिका और भारत की क्यों है नजर?

चीन के पड़ोसी देश ताइवान में आज (13 जनवरी) आम चुनाव है. इस चुनाव पर पूरी दुनिया की नजर है खासतौर से चीन और अमेरिका की. ताइवान चुनाव के नतीजे उसके अमेरिका और चीन दोनों के साथ रिश्तों पर असर डालेंगे. ये निर्भर करता है किस पार्टी की सरकार राष्ट्रपति की कुर्सी हासिल करेगी.चुनाव के नतीजे ताइवान के चीन के साथ तनाव को बढ़ा भी सकते हैं और घटा भी. इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी असर देखने को मिल सकता है.आइए समझते हैं चीन और ताइवान के बीच तनाव की कैसे हुई शुरुआत, ताइवान में कैसे चुना जाता है राष्ट्रपति, चुनाव में कितनी पार्टियों के बीच टक्कर, क्यों दुनिया की चुनाव पर है नजर.ताइवान द्वीप साउथ ईस्ट चीन के तट से 161 किमी दूर है. चीन हमेशा से मानता आया है कि ताइवान उसका ही हिस्सा है जो अलग हो गया है. चीन ये भी मानता है कि एक दिन ताइवान फिर उसमें विलय हो जाएगा. मगर ताइवान की बड़ी आबादी खुद को एक अलग देश के रूप में देखना चाहती है.बात है 17वीं सदी की, जब चीन पर चिंग राजवंश का शासन था. 1683 से 1895 तक चिंग राजवंश चीन और ताइवान पर शासन करता रहा. 1894-95 के युद्ध में चीन जापान से हार गया. इसके बाद ताइवान जापान के हिस्से में चला गया. साल 1939 में दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई. ये युद्ध धुरी राष्‍ट्र (जर्मनी, इटली और जापान) और मित्र राष्ट्रों (फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन) के बीच लड़ा गया था. जापान की हार के बाद चीन के बड़े राजनेता और मिलिट्री कमांडर चैंग काई शेक को ताइवान सौंप दिया गया. तब ताइवान चीन का ही हिस्सा था.1949 में चीन में शेक और कुओमिनतांग पार्टी (केएमटी) के खिलाफ गृहयुद्ध छिड़ गया. चीन की कम्युनिस्ट सेना ने चैंग काई को हरा दिया. इसके बाद माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने बीजिंग की सत्ता पर कब्जा कर लिया और चैंग काई शेक (केएमटी) अपने सहयोगी के साथ चीन से भागकर ताइवान चले गए. उन्होंने ताइवान पर अपना शासन जमा लिया. उधर चीन ने दुनिया को ये बताया कि ताइवान उसका ही हिस्सा है, उसका ही शासन है.केएमटी और कम्युनिस्ट दोनों एकदूसरे के कट्ठर दुश्मन बन गए. हालांकि साल 1980 के दशक में दोनों के रिश्ते बेहतर होने शुरू हुए. दोनों के बीच युद्ध विराम का ऐलान हो गया. ताइवान में 1996 में पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुआ. जीत सत्ताधारी पार्टी को मिली.मगर 2000 चुनाव में KMT ने ताइवान में सत्ता खो दी. ताइवान के नए राष्ट्रपति चेन श्वाय बियान ने खुलेआम चीन का विरोध किया और खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र बताया. यहां से फिर चीन और ताइवान के बीच संबंध बिगड़ गए.

ताइवान राष्ट्रपति चुनाव में कौन-कौन उम्मीदवार
ताइवान के राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव में मुख्य रूप से तीन पार्टियों के बीच टक्कर है. ये तीन ही मुख्य पार्टियां हैं-

  • डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP)
  • कुओमितांग (KMT)
  • ताइवान पीपुल्स पार्टी (TPP)

वर्तमान में ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन हैं. डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की साई इंग वेन ताइवान की पहली महिला राष्ट्रपति हैं. वे लगातार दो कार्यकाल यानी कि साल 2016 से राष्ट्रपति पद पर हैं. 2020 से डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की अध्यक्ष भी हैं.

डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP)
सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के लाई चिंग-ते राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं. साल 2020 से ताइवान के उपराष्ट्रपति हैं. वर्तमान में डीपीपी संसद में 63 सीटों के साथ बहुमत में है. डीपीपी ताइवान की अलग पहचान का समर्थन करती है और चीन की मुखर विरोधी पार्टी है. डीपीपी का चीन की बजाय अमेरिका की तरफ ज्यादा झुकाव है. वहीं चीन उन्हें कट्टर अलगाववादी वाली पार्टी मानता है.चुनाव से पहले किए गए सर्वे में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को बढ़त मिलती दिख रही है. ताइवान में अगर डीपीपी की जीत होती है तो 27 साल के लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार किसी पार्टी की लगातार तीसरी बार सरकार बनेगी. डीपीपी ने अपने आठ साल के कार्यकाल में चीन को आंख दिखाकर खास तौर से अमेरिका के साथ संबंध मजबूत किए हैं. इस कारण चीन की नाराजगी बढ़ी है.

कुओमिनतांग पार्टी (KMT)
विरोधी मोर्चे पर कुओमिनतांग पार्टी की ओर से होउ यू-यी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं. उनकी छवि उदारवादी नेता की है. उनके चीन के साथ अच्छे संबंध हैं और उनकी पार्टी ताइवान को चीन का ही हिस्सा मानती है. होउ चीन के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करने और शांति बनाए रखने के लिए बातचीत करने पर जोर देते हैं.कुओमिनतांग पार्टी (केएमटी) वही पार्टी है जिसकी 1949 तक चीन में सरकार थी मगर कम्युनिस्ट सेना से गृहयुद्ध में हारकर भागना पड़ा था. केएमटी चीन की पक्षधर है हालांकि खुद बीजिंग समर्थक होने से इनकार करती है.

ताइवान पीपुल्स पार्टी (TPP)
2019 में गठित ताइवान पीपुल्स पार्टी (टीपीपी) की ओर से को वेन-जे राष्ट्रपति चुनाव की रेस में शामिल हैं. 2014 में ताइवान की राजधानी ताइपे के मेयर पद के चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार थे. इससे पहले एक सर्जन थे.टीपीपी का रूख स्पष्ट नहीं है कि वो किस तरफ है. टीपीपी खुद को डीपीपी और केएमटी से असंतुष्ट वोटरों के लिए तीसरी आवाज के रूप में पेश करती है. हालांकि सर्वे में ज्यादा सीटें मिलने की संभावना नहीं है.

ताइवान में कैसे होता है चुनाव?
ताइवान में राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 साल का होता है. नए राष्ट्रपति 20 मई 2024 को पदभार संभालेंगे. एक राष्ट्रपति लगातार अधिकतम दो कार्यकाल तक पद पर रह सकता है. राष्ट्रपति सेना का कमांडर-इन-चीफ भी होता है. राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है, इसके बाद कैबिनेट का गठन होता है.ताइवान में राष्ट्रपति और आम चुनाव एक साथ होते है. यहां की जनता ही राष्ट्रपति का चुनाव करती है. नागरिक तीन बार मतदान करते हैं. सबसे पहले नागरिक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान करते हैं. दूसरा, स्थानीय विधायकों के चुनाव के लिए मतदान होता है. तीसरा, राज्य में प्रतिनिधित्व करने वाली ‘पार्टी लिस्ट’ के लिए मतदान करना होता है.ताइवान की संसद में कुल 113 सदस्य शामिल होते हैं. निर्वाचन क्षेत्रों से 73 सदस्य, पार्टी लिस्ट से 34 सदस्य और छह सीटें स्वदेशी ताइवानी प्रतिनिधियों के लिए रिजर्व होती हैं. किसी पार्टी को संसद में अपनी सीटें सुरक्षित करने के लिए उसे कुल पार्टी वोटों का कम से कम 5 फीसदी हासिल करना होता है.

कितने देशों ने ताइवान को दी मान्यता
ताइवान की जनसंख्या करीब दो करोड़ है. दुनिया में 12 देश ही ऐसे हैं जो ताइवान को चीन से अलग मान्यता देते हैं. इनमें मुख्य तौर पर साउथ अमेरिका, कैरिबियन और ओशिनिया है. संयुक्त राष्ट्र ने भी ताइवान को एक आजाद मुल्क की मान्यता नहीं दी है. चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. ये पॉलिसी साल 1949 में अस्तित्व में आई थी. भारत ने वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान द्वीप के बजाय चीन को 1949 में मान्यता दी थी और अमेरिका ने 1979 में दी. वन चाइना पॉलिसी का मतलब है चीन एक ही देश है, ताइवान उसका ही एक प्रांत है.

दुनिया के लिए ताइवान अहम क्यों?
ताइवान दुनिया के लिए भौगोलिक और रणनीतिक रूप से बहुत अहम माना जाता है. चीन का दक्षिण सागर पर पहले से ही प्रभुत्व है, अगर ताइवान भी उसके पास आ जाता है तो समुद्र में चीन का और ज्यादा इलाके पर कंट्रोल हो जाएगा. इसका समुद्र के जरिए दुनिया के कारोबार पर भी प्रभाव पड़ेगा.दूसरा, ताइवान की एक कंपनी ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग की दुनियाभर के देशों के बाजार में बड़ी हिस्सेदारी है. ये कंपनी एक ऐसी चिप बनाती है जिसका मोबाइल, लैपटॉप, घड़ियों और गेम्स कंसोल में इस्तेमाल होता है. 2021 में इस कंपनी की वैल्यू करीब 100 अरब डॉलर थी. अगर चीन का ताइवान पर नियंत्रण हो जाता है तो दुनिया के सबसे बड़े कारोबार पर भी चीन का शासन हो सकता है.ताइवान और भारत दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं. दोनों देश चीन के बढ़ते प्रभाव का विरोध करते हैं. ताइवान की स्थिति भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है. ताइवान की स्थिति पर चीन के कब्जे का भारत के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

JNS News 24

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