तेजस्वी ने ऑस्ट्रेलिया दौरा किया रद्द, क्या नीतीश कुमार से बढ़ते तनाव का है कनेक्शन
अफ़वाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और मिशन 2024 पर ध्यान लगाना चाहिए.”
बिहार की महागठबंधन सरकार के दो बड़े दलों जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के बीच ताज़ा तनाव की ख़बरें हैं. ऐसा दावा साथ ही रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इस तनाव के कारण राज्य के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपना ऑस्ट्रेलिया दौरा भी रद्द कर दिया है.अख़बार के मुताबिक़, ताज़ा तनाव जेडीयू के अध्यक्ष पद से राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह को हटाने के बाद से बढ़ा है. ललन सिंह को हटाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जेडीयू अध्यक्ष बनाया गया है.माना जा रहा है कि ललन सिंह की आरजेडी से बढ़ती नज़दीकी के कारण ऐसा क़दम उठाया गया है.बिहार की महागठबंधन सरकार के बीच साफ़ कलह का संकेत तब भी देखने को मिले जब उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने अपना ऑस्ट्रेलिया दौरा रद्द कर दिया. ये दौरा 6 जनवरी से शुरू हो रहा था.तेजस्वी यादव आईआरसीटीसी मामले में ईडी के सामने पेशी के अगले दिन पहले से प्लान किए गए इस दौरे पर जाने वाले थे.
आरजेडी के एक मुख्य नेता अख़बार से कहते हैं कि पार्टी ‘अपने मुख्य नेता को देश से बाहर भेजकर राज्य की राजनीति में अनिश्चितता के बीच कोई ख़तरा मोल नहीं लेना चाहती है.’उन्होंने कहा, “तेजस्वी ने दिसंबर में चार मौक़ों पर मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा नहीं किया था. यह हमारे तनावपूर्ण संबंधों का संकेत है. मुख्यमंत्री अपने उप-मुख्यमंत्री को ‘कुशासन’ (आरजेडी के कार्यकाल) को लेकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर शर्मिंदा करते रहे हैं.”नीतीश कुमार कई बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार से पहले बिहार में कुशासन था.एक अन्य आरजेडी के सूत्र कहते हैं कि ललन सिंह के जेडीयू प्रमुख पद से हटाए जाने से ‘जेडीयू और आरजेडी के बीच एक अविश्वास पैदा हुआ है, जिसे कोई भी नेता सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं कर रहा है.’वहीं एक आरजेडी नेता ने कहा कि दोनों दलों के लिए जनवरी बेहद ‘महत्वपूर्ण’ होने जा रहा है.वो कहते हैं, “हम मंत्रिमंडल का विस्तार (चार मंत्रालय अभी भी भरे जाने हैं) जल्द चाहते हैं. इसके बाद हमको यक़ीन होगा कि महागठबंधन मज़बूत है और हम सकारात्मक मानसिकता के साथ लोकसभा चुनावों में जा सकते हैं.”उन्होंने कहा कि इन मतभेदों के बावजूद विधानसभा में संख्याबल के कारण नीतीश गठबंधन के साथ ही रहेंगे.वो नेता कहते हैं, “आरजेडी, कांगेस और वामपंथी दलों के पास कुल मिलाकर 114 विधायक हैं, जिसमें बहुमत के लिए आठ विधायक कम हैं. वो फिर से एनडीए के साथ जाने का ख़तरा नहीं लेंगे क्योंकि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी भी गंवा सकते हैं. नीतीश तब तक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं, जब तक कि वो मुख्यमंत्री हैं.”2020 के विधानसभा चुनावों में आरजेडी या बीजेपी की तुलना में जेडीयू को सिर्फ़ आधी सीटें मिली थीं. जेडीयू को जहाँ 43 सीटें मिली थीं, वहीं बीजेपी को 74 और आरजेडी को 75 सीटें मिली थीं.हालांकि, उस समय नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे. अगस्त 2022 में उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया.महागठबंधन में ‘मतभेदों’ पर अब तक किसी भी जेडीयू नेता ने कुछ नहीं कहा है. वहीं ललन सिंह ने ख़ुद को पद से हटाए जाने पर नीतीश से मनमुटाव होने को ख़ारिज किया है और उनका कहना था कि यह ‘उनके 37 साल के राजनीतिक करियर को ख़राब करने की कोशिश है.’नीतीश कुमार के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा था, “नीतीश कुमार ने वापस कमान संभाली है ताकि वो इंडिया गठबंधन के लिए मज़बूती से काम कर सकें. किसी को भी अफ़वाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और मिशन 2024 पर ध्यान लगाना चाहिए.”