हाथरस

हाथरस की चुनावी आबोहवा में हींग सी खुशबू और भांति-भांति के रंग बिखरे हैं। मतदाता बेहद मुखर हैं। न अपनी दुश्वारियां बताने से हिचकते हैं

2009 में जरूर रालोद प्रत्याशी जीता था, लेकिन तब रालोद-भाजपा का गठबंधन था।

हाथरस की हींग की खुशबू में रामधुन घुल गई है। यहां के मतदाता अपना रुख स्पष्ट कर देते हैं कि वे किधर हैं। साफ है कि मतदाता किसी अगर-मगर में नहीं हैं। हाथरस एससी के लिए सुरक्षित सीट है। पर, यहां कभी बसपा-सपा का खाता नहीं खुला।हाथरस की चुनावी आबोहवा में हींग सी खुशबू और भांति-भांति के रंग बिखरे हैं। मतदाता बेहद मुखर हैं। न अपनी दुश्वारियां बताने से हिचकते हैं और न ही अपनी पक्षधरता स्पष्ट करने से भय खाते हैं। चुनाव पर चर्चा शुरू होते ही अधिकतर लोग अपना रुख स्पष्ट कर देते हैं कि वे किधर हैं। साफ है कि मतदाता किसी अगर-मगर में नहीं हैं। हाथरस एससी के लिए सुरक्षित सीट है। पर, यहां कभी बसपा-सपा का खाता नहीं खुला। 1991 की रामलहर से यहां भाजपा ही जीतती रही है। 2009 में जरूर रालोद प्रत्याशी जीता था, लेकिन तब रालोद-भाजपा का गठबंधन था। 2019 के चुनाव में भाजपा के राजवीर दिलेर जीते थे। उन्होंने 2,60,208 मतों के अंतर से सपा के रामजीलाल सुमन को पटकनी दी थी।
इस बार राजवीर के बजाय भगवा खेमे ने अनूप प्रधान वाल्मीकि को मैदान में उतारा है। हाथरस के चुनावी बयार का रुख भांपने के लिए सबसे पहले हम सादाबाद विधानसभा क्षेत्र के मढ़ाका पहुंचे। यहां मिले राजकुमार और बलवीर सिंह कहते हैं, हमारी सीट तो भाजपा का गढ़ है। रात-बिरात कहीं भी जा सकते हैं, जबकि पहले ऐसा नहीं था। दलवीर सिंह ने टोकने के अंदाज में बीच में ही सवाल उछाल दिया, क्या अब किसानों की भैंसें नहीं खुल (चोरी) रही हैं? कैलाश ठेनुआ बताते हैं कि सपा प्रत्याशी जसवीर वाल्मीकि काफी सीधे हैं। इस बार उन पर दांव लगाकर देखेंगे। वे क्षेत्र में काफी मेहनत भी कर रहे हैं।ठेनुआ के तर्कों पर राजवीर सिंह कहते हैं, सपा प्रत्याशी सज्जन जरूर हैं, पर इसका फायदा उन्हें अगले चुनाव में ही मिल सकता है। इस चुनाव में तो फिलहाल कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। रवि पचौरी भाजपा प्रत्याशी को आगे बताते हैं, तो साकेत चौधरी सपा और भाजपा में टक्कर बताते हैं। साकेत कहते हैं, बसपा प्रत्याशी तो क्षेत्र में दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। इसपर हीरा लाल ने धीरे से कहा, बसपा हमेशा खामोशी से लड़ाई लड़ती है।ग्राम पंचायत महो खास के सुरेंद्र कुमार बताते हैं, मेरे यहां तो भाजपा का ही सिक्का चल रहा है। भिखारी दास वार्ष्णेय मानते हैं कि हिंदुत्व का मुद्दा ही सबसे बड़ा है। वहीं, सुधीर सेंगर कहते हैं, भाजपा क्षत्रिय नेतृत्व को दरकिनार कर रही है। रोजगार के फ्रंट पर भी विफल है। पेट्रोल की कीमत भी काफी बढ़ा दी है।

JNS News 24

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