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हरियाली रियाली तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का विशेष दिन होता है

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है

हरियाली रियाली तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का विशेष दिन होता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शनि देव स्वयं भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं, और इस दिन उनकी कृपा पाने के लिए विशेष उपाय किए जा सकते हैं। विशेषकर उन जातकों के लिए, जो इस समय शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव में हैं जैसे कि मेष, कुंभ और मीन राशि हरियाली तीज एक सुनहरा अवसर है।श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है, जिसे विशेष रूप से स्त्रियों का पर्व माना गया है। इस दिन सभी विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु,दांपत्य जीवन में प्रेम तथा भाग्योदय के लिए व्रत करती हैं।वहीं शादी के योग्य कन्याएं मनोकूल वर प्राप्ति के लिए शिव-पार्वती की पूजा कर उनको प्रसन्न करती हैं। सावन का महीना भारत में उत्सव, प्रेम और प्रकृति की रौनक का प्रतीक माना जाता है। इस समय वर्षा ऋतु के कारण प्रकृति नवजीवन से भर जाती है। पेड़-पौधों की हरियाली, ठंडी हवाएं और बादलों की गड़गड़ाहट वातावरण को संगीतमय बना देती है। हरियाली तीज का सीधा संबंध माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया था। अंततः उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से यह दिन स्त्रियों के लिए सौभाग्य और प्रेम का प्रतीक बन गया।हरियाली तीज विवाहित स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य की प्राप्ति का अवसर है। वे इस दिन निर्जल व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। साथ ही कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखकर शिव जैसे आदर्श पति की कामना करती हैं। इस दिन सोलह श्रृंगार करना विशेष फलदायी माना गया है।हरियाली, श्रृंगार और पारंपरिक सौंदर्य इस दिन महिलाएं हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं, हरी चूड़ियां और मेहंदी लगाती हैं, जो सौभाग्य और हरियाली का प्रतीक हैं। लोकगीतों और झूलों से पूरा वातावरण उल्लासमय हो जाता है। महिलाएं पारंपरिक नृत्य और गीतों के माध्यम से इस पर्व को आनंदमय बनाती हैं।हरियाली तीज के अवसर पर नवविवाहित बेटियों को ससुराल से मायके बुलाया जाता है। साथ ही ससुराल की ओर से “सिंजारा” भेजने की परंपरा है, जिसमें वस्त्र, गहने, श्रृंगार-सामग्री, मेहंदी, मिठाइयाँ और घेवर शामिल होते हैं। यह परंपरा नवविवाहिता के नए जीवन के सौंदर्य और ससुराल के स्नेह को दर्शाती है।इस दिन स्त्रियां मिट्टी या बालू से शिव-पार्वती की प्रतिमा बनाती हैं। सुहाग की सामग्री जैसे चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, कंघी आदि थाली में सजाकर माता पार्वती को अर्पित किया जाता है। नैवेद्य में खीर, पूरी, हलुआ या मालपुए चढ़ाए जाते हैं। पूजा के पश्चात शिव-पार्वती की कथा सुनना आवश्यक होता है। अंत में प्रतिमाओं का नदी या किसी पवित्र जल में विसर्जन किया जाता है। शास्त्रों में वर्णन है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से स्त्रियों को सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

 

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