सावन का महीना शिवजी की भक्ति, उपासना और व्रत आदि के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है.
कांवड़ यात्रा भी होती है, जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है.

सावन का महीना शिवजी की भक्ति, उपासना और व्रत आदि के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. साथ ही इसी महीने में कांवड़ यात्रा भी होती है, जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है.कावड़ यात्रा के दौरान कांवड़िये हर-हर महादेव और बम-बम भोले का नारा लगाते हुए शिव मंदिर और शिवालयों तक पहुंचते हैं. कांवड़ यात्रा में शिवभक्त हरिद्वार और गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों का पवित्र गंगाजल लेकर शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं. ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत शिवजी के परम भक्त भगवान परशुराम ने की थी. इसके बाद से ही कांवड़ यात्रा कर भगवान शिव पर जल अर्पित करना आस्था, श्रद्धा और निष्ठा का प्रतीक बन गया.कांवड़ हिंदू धर्म की एक खास धार्मिक और वार्षिक यात्रा है, जोकि सावन के महीने में की जाती है. इस साल सावन की शुरुआत 11 जुलाई 2025 से हो रही है और 9 अगस्त को इसका समापन होगा. सावन शुरू होते ही कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है. ऐसे में इस साल 11 जुलाई 2025 से कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत हो जाएगी और पूरे 30 दिनों तक चलेगी. कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़ियों को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है, जोकि जरूरी माने जाते हैं.कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहता है. इस समय शराब, पान, गुटखा, सिगरेट, तंबाकू जैसे सभी तरह के नशीले पदार्थों से दूरी बना लेनी चाहिए.अगर एक बार आपने कांवड़ यात्रा की शुरुआत कर दी तो रास्ते में कांवड़ (कलश के पानी) को कहीं भी नहीं रखें. खासकर कांवड़ को जमीन में रखने से बचें. इससे आपकी यात्रा अधूरी मानी जाती है. अगर गलती से कहीं भी जमीन पर कांवड़ रख दिया तो फिर से जल भरकर यात्रा की शुरुआत करनी होती है.यात्रा के दौरान कांवड़िये जब भी मल-मूत्र का त्याग करें तो स्नान के बाद ही कांवड़ को स्पर्श करें. बिना स्नान के कांवड़ को दोबारा नहीं उठाना चाहिए.कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को ऐसी कोई भी वस्तु स्पर्श नहीं करनी चाहिए, जोकि चमड़े से बनी हो. कांवड़ यात्रा में कांवड़िये क्या करते हैं?कांवड़ यात्रा भगवान शिव को समर्पित पवित्र यात्रा है. इस यात्रा को करने वाले भक्तों को ‘कांवड़िया’ कहा जाता है. यात्रा के दौरान तीर्थयात्री या श्रद्धालु हरिद्वार, ऋषिकेश, गोमुख, सुल्तानगंज जैसे पवित्र स्थानों से नदी का जल भरकर कई किलोमीटर की लंबी पद (पैदल) यात्रा की शुरुआत करते हैं और गंतव्य स्थान (शिव मंदिर या शिवालय) तक पहुंचाया जाता है. इसी पवित्र जल से शिवलिंग अभिषेक किया जता है.
Q. क्या सावन कांवड़ यात्रा कठिन होती है?
A. हां, कांवड़ यात्रा कठिन तीर्थयात्रा में एक मानी जाती है. इसमें कांवड़िये नंगे पैर पैदल ही कई दिनों तक चलते हुए धूप, बारिश और थकान का सामना करते हुए गंतव्य स्थान तक पहुंचते हैं.
Q. क्या कांवड़ यात्रा से मनोकामना पूरी होगी?
A. हां, धार्मिक मान्यता है कि, भगवान शिव कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
Q. क्या कांवड़ यात्रा के दौरान व्रत रखा जाता है?
A. नहीं, कांवड़ यात्रा के दौरान निर्जला या फलाहार व्रत रखने का विधान नहीं है. लेकिन यात्रा के दौरान मांस-मंदिरा से दूर रहना चाहिए और केवल सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए.
Q. सबसे पहले किसने की थी कांवड़ यात्रा
A. शिवजी के भक्त भगवान परशुराम ने हरिद्वार से गंगाजल लाकर पुरा महादेव में चल चढ़ाया था. इसे ही पहली कांवड़ यात्रा माना जाता है.