हनुमान जयंती की तिथि को लेकर कई सारे भ्रम हैं. इसलिए कई बार आपस में विवाद होने की संभावना बनी रहती है.
महेश्वर खंड केदार महातम्य 8.100) में लिखा है कि चैत्र पूर्णिमा के चैत्र नक्षत्र को शिव के ग्यारहवें रूद्र ने हनुमान के रूप में विष्णु की सहायता हेतु जन्म लिया
हनुमान जयंती की तिथि को लेकर कई सारे भ्रम हैं. इसलिए कई बार आपस में विवाद होने की संभावना बनी रहती है. आइए आज उन्हीं बातों को शास्त्रों को आधार बनाकर समझें.स्कन्दपुराण में लिखा है –
यो वै चैकादशी रुद्रो हनुमान स महाकपि:।
अवतीर्ण: सहायार्थ विष्णो रमित तेजस:।।
(महेश्वर खंड केदार महातम्य 8.100) में लिखा है कि चैत्र पूर्णिमा के चैत्र नक्षत्र को शिव के ग्यारहवें रूद्र ने हनुमान के रूप में विष्णु की सहायता हेतु जन्म लिया था.उत्सव सिंधु के अनुसार कार्तिक मास में हनुमान जी का जन्म हुआ था : –
ऊर्जस्य चासिते पक्षे स्वाल्यां भौमे कपीश्वरः ।
मेषलग्नेऽञ्जनीगर्भाक्छिवः प्रादुरभूत् स्वयम् ॥
अर्थ– कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, भौमवार को स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में अंजनी के गर्भ से हनुमान जी के रूप में स्वयं शिवजी उत्पन्न हुए थे.आनंद रामायण (सार कांड 13.162–163)
चैत्रे माति सिते पक्षे हरिदिन्यां मघाऽभिधे।
नक्षत्रे स समुत्पन्नो इनुमान् रिपुखदनः।।162॥
महाचैत्रीपूर्णिमायां समुत्पन्नोऽञ्जनीसुतः।
वदन्ति कल्पमेदेन चुधा इत्यादि केचन ॥163।।
अर्थ – चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन माघान नक्षत्रमें रिपु दमन हनुमान का जन्म हुना था. कुछ पण्डित कल्पभेदले चैत्र की पूर्णिमा के दिन हनुमान् का शुभ जन्म हुआ, ऐसा कहते हैं.
कल्प भेद के कारण हनुमान जयंती की तिथियों में भिन्नता अलग-अलग शास्त्रों में तिथियां भिन्न हैं. लेकिन यह भिन्नता कल्प भेद के कारण है. उदाहरण के लिए अगस्त्य संहिता और व्रत रत्नाकर में लिखा है हनुमान अंजना के गर्भ में कार्तिक मास में जन्म लिया था. यह भिन्नता कल्प भेद के कारण है. इसलिए कहीं कहीं हनुमान जयंती दो बार मनाई जाती है (कार्तिक और चैत्र). इनमें से कोई भी तिथि गलत नहीं है. मात्र कल्प भेद के कारण यह अंतर है. हनुमान जी के जन्म प्रत्येक कल्प में हुआ है और होता रहेगा. पर सभी शास्त्र इस बात से सहमत हैं कि हनुमान शिवजी के ग्यारहवें रूद्र हैं, जैसा कि हनुमानष्टक (5.33) और स्कन्द पुराण (महेशवर खंड केदार महात्म्या) में दिया गया है.
दूसरी भ्रांति: केसरी पुत्र या वायु पुत्र?
अगर हनुमान जी केसरी के पुत्र हैं तो वायु पुत्र क्यों कहलाते हैं? इसका जवाब यह है कि, हनुमान जी थे तो केसरी और अंजना के पुत्र लेकिन उनको आशीर्वाद था वायु देव और महादेव का क्योंकि अंजना जी ने दोनों (वायु और महादेव) की तपस्या की थी एक तेजस्वी पुत्र के लिए और उसी आशीर्वाद के कारण वो वायु पुत्र और शंकर सुवन भी कहलाएं.
तीसरी भ्रांति: “शंकर सुवन” या “शंकर स्वयं”?
हनुमान चालीसा में “शंकर सुवन केसरी नंदन” वाला पाठ सही है या गलत?
इसमें गलती की कोइ संभावना ही नहीं हैं क्योंकि शिव पुराण (शत रूद्र संहिता 20.32) में भी हनुमान जी को शिव का पुत्र ही बताया हैं: –
सर्वथा सुखिनं चक्रे सरामं लक्ष्मणं हि सः। सर्वसैन्यं ररक्षासौ महादेवात्मजः प्रभुः॥ 32
अर्थ– महादेव के पुत्र (महादेव + आत्मजः) प्रभु उन हनुमान जी ने लक्ष्मण सहित श्रीराम जी को सब प्रकार से सुखी बनाया और सम्पूर्ण सेना की रक्षा की. हनुमान जी शिव जी पूर्ण अवतार नहीं थे बल्कि वो शिव जी ने अंश अवतार थे (ग्यारवें रूद्र अवतार). महाभारत में भी अर्जुन को साक्षात इंद्र का अवतार बताया है और इंद्र का पुत्र भी. मेरे विचार और अन्य पारंपरिक आचार्यों के अनुसार, दोनों पाठ सही है “शंकर स्वयं केसरी नंदन” और “शंकर सुवन केसरी नंदन”. दोनों के प्रमाण अपको शस्त्रों में मिलेंगे. रामचरित मानस के बालकांड में एक सुंदर दोहा हैं: –
“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”।
चौथी भ्रांति: मारुति अथवा हनुमान?
बल्यावस्था से हनुमान जी का नाम मारुति था. बाद में उनका नाम हनुमान पड़ा. उनका नाम हनुमान कब पड़ा?
वाल्मीकि रामायन उत्तर कांड 36.11 में इंद्र कहते हैं कि ज़ब उनके हाथ से वज्र छूटा तब वह बालक हनुमान के हनु या ठोड़ी को तोड़ता हुआ नीचे गिरा. इसलिए उनका नाम हनुमान पड़ा.
पांचवी भ्रांति: शिक्षा कहां तक थी?–
हनुमान जी की शिक्षा कहां तक थी?
वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धा कांड के अनुसार, नानृग्वेदविनीतस्य नायजुर्वेद्धारिणः
नासामवेदविदुषश्शक्यमेवं विभाषितुम् नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम्।
अर्थात हनुमान जी अति विद्वान् थे जिन्हे ऋग्वेद सामवेद और यजुर्वेद के साथ ही व्याकरण का सम्पूर्ण ज्ञान था.
छटवी भ्रांति: हनुमान जयंती सही है या हनुमान जन्मोत्सव?
कोई भी संस्कृति या हिंदी डिक्शनरी में कही प्रमाणित नहीं होता कि जयंती केवल मरे हुए व्याक्ति की मनाई जाती है और तो और जन्मोत्सव तो जयंती का पर्यायवाची शब्द है. अब कुछ लोग जयंती शब्द पर आक्षेप करने लगे हैं और इसे हनुमान जन्मोत्सव बोलने के लिए कह रहें हैं. उनका यह तर्क है कि जयंती तो मृत लोगों की होती है. परन्तु जयंती तो शास्त्र सम्मत शब्द है जिसका प्रयोग सदियों से हो रहा है.
यह कथन स्कन्दपुराण में है. जन्मोत्सव से केवल तिथि ज्ञात होती है. लेकिन जब वह किसी नक्षत्र से जुड़ती है तब उसकी शुभता बढ़ जाती है. इसके लिए प्रथम जयंती को समझ लें. अग्नि पुराण 183.2 में लिखा है कि भगवान कृष्ण मध्य रात्रि में जन्मे इसलिए यह जयंती कहा गया है (यतस्तस्यां जयन्ती स्यात्ततोऽष्टमी । सप्तजन्मकृतात्पापात्मुच्यते चोपवासतः॥) यहां स्पष्टतः जयंती शब्द प्रयोग हुआ है कृष्ण जन्म के समय.
व्रतउत्स्व चंद्रिका में भी चौथे अध्याय में (1923 को प्रकाशित ) लिखा है यह दिन हनुमान जयंती कहलाएगा. जयंती तो जन्मोत्सव का ही पर्यायवाची शब्द है. इस बात को कोई साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं कि जयंती शब्द उन लोगों के लिए कहा जाएगा जो मर चुके हैं. आप जयंती कह लो या जन्मोत्सव भक्तों को तो हनुमान वंदना करनी है.
सातवी भ्रांति: हनुमान जी ने जनेयू धरण किया है ऐसा किसी शास्त्र में वर्णित नहीं, केवल हनुमान चालीसा (कंधे मूंज जनेऊ साजे) में है और हनुमान जी को मंगलवार के दिन क्यों पूजा जाता है?
“हनुमदुपासना कल्पद्रुम” में इन दोनों बातों का प्रमाण मिलता है, श्लोक इस प्रकार हैं–
चैत्रे मासि सिते पक्षे पौर्णमास्यां कुजेऽहनि । मौञ्जीमेखलया युक्तं, कौपीनपरिधारकम् ॥ नवमासगते पुत्रं सुपुत्रे साञ्जना शुभम् ॥
अर्थ –चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंगलवार के दिन मूंज की मेखला से युक्त, कौपीन पहिने हुए और यज्ञोपवीत से भूषित हनुमान जी का उत्पन्न होना लिखा है.
बजरंगबली बल के प्रतीक हैं. हनुमान जयंती पर उपासना करके आप सभी लोग अपना शारीरिक एवं मानसिक बल में वृद्धि करें.