शिक्षा

भारत में यूपीएससी परीक्षा सिर्फ एक एग्जाम नहीं, बल्कि एक जुनून है.

एग्जाम की तैयारी के लिए अपना करियर, शादी और परिवार तक छोड़कर सबकुछ दांव पर लगा देते हैं.

भारत में यूपीएससी परीक्षा सिर्फ एक एग्जाम नहीं, बल्कि एक जुनून है. लाखों युवा अपनी जिंदगी के कई साल इस एक एग्जाम की तैयारी में लगा देते हैं. कुछ तो एग्जाम की तैयारी के लिए अपना करियर, शादी और परिवार तक छोड़कर सबकुछ दांव पर लगा देते हैं. लेकिन हाल ही में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने यूपीएससी की तैयारी में 7 से 8 साल का समय लगाने को ‘समय की बर्बादी’ बताया है. उनके इस बयान ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है.संजीव सान्याल ने एक पॉडकास्ट में कहा, मुझे लगता है कि बहुत सारे युवा जिनमें काफी ऊर्जा है, यूपीएससी की परीक्षा पास करने की कोशिश में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं. हर देश को एक नौकरशाही तंत्र की जरूरत होती है, इसलिए ऐसी परीक्षा देना बिल्कुल ठीक है. लेकिन मुझे लगता है कि लाखों लोग अपने सबसे अच्छे साल इस परीक्षा की तैयारी में लगा देते हैं, जबकि असल में कुछ ही हजार लोग इसमें सफल हो पाते हैं. मुझे यह समझ में नहीं आता आखिर क्यों. अगर वही समय किसी और जगह लगाया जाए, तो हम ज्यादा ओलिंपिक पदक जीत सकते हैं, बेहतर फिल्में बना सकते हैं, बेहतर डॉक्टर और वैज्ञानिक पैदा कर सकते हैं.ज्वाइंट सेक्रेटरी बनने का सपना ही क्यों?’
53 साल के अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने अपनी बात में ‘आकांक्षाओं की कमी’ की बात भी कही. साथ ही अपने तर्क को मजबूत करने के लिए बिहार और पश्चिम बंगाल का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल में जहां तथाकथित बुद्धिजीवी और यूनियन लीडर आदर्श माने जाते हैं (पश्चिम बंगाल), या छोटे-मोटे गुंडे राजनेता (बिहार) आदर्श माने जाते हैं, वहां से निकलने का एकमात्र रास्ता सरकारी नौकरी करना ही बचता है. लेकिन ये भी एक तरह से आकांक्षाओं की कमी को दर्शाता है. आपको एलन मस्क या मुकेश अंबानी जैसा बनने का सपना देखना चाहिए. ज्वाइंट सेक्रेटरी बनने का सपना क्यों?संजीव सान्याल के बयान के मायने क्या हैं
अर्थशास्त्री संजीव सान्याल के कहने का मतलब है कि भारत में आज नई संभावनाओं का दौर है. नई-नई तरह की नौकरियां और स्टार्ट-अप्स उभर रहे हैं. ऐसे में लाखों युवाओं को अपनी जिंदगी के 7-8 साल एक ही परीक्षा की तैयारी में लगा देना ठीक नहीं है. एक नौकरी के लिए इतने साल बर्बाद करने से अच्छा है ये समय किसी बिजनेस या किसी करियर में लगाएं तो अच्छा नतीजा मिलेगा.

क्यों सिविल सेवक बनना चाहते हैं भारतीय
भारतीय समाज में सिविल सेवकों को देश की सेवा करने वाले बुद्धिमान और काबिल इंसान के रूप में देखा जाता है. सिविल सेवा में नौकरी स्थायी होती है और इसमें अच्छी पेंशन मिलती है. इसके अलावा मान-सम्मान, सुरक्षित नौकरी, रुतबा और ऊंची तनख्वाह भी एक वजह होती है. सिविल सेवक बनने के लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की ओर से एक परीक्षा आयोजित कराई जाती है. ये परीक्षा भारत की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक है.सिविल सेवा में शामिल होने का मतलब है कि आप देश के सबसे सम्मानित और प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक में काम करेंगे. यह परीक्षा पास करने के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS) और अन्य सिविल सेवाओं में नौकरी करने का अवसर मिलता है. सिविल सेवकों की नीतियां बनाने और उसे लागू करने में बड़ी भूमिका होती है. वे समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और लोगों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं.कितने प्रतिशत छात्र पास कर पाते हैं एग्जाम साल 2023 में करीब 13 लाख छात्र प्रारंभिक परीक्षा में शामिल हुए थे. इनमें से केवल 14,624 छात्र ही मुख्य परीक्षा के लिए क्वालिफाई कर पाए. जबकि कुल 1255 सरकारी पदों के लिए ही भर्ती होनी थी. इतने सारे छात्रों में से केवल 14,624 छात्र ही कटऑफ अंक ला पाए और मुख्य परीक्षा के लिए चुने गए. बाकी छात्र इसी चरण में बाहर हो गए.

JNS News 24

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