आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर कलक्ट्रेट में आयोजित गोष्ठी में गूंजी लोकतंत्र रक्षक सेनानियों की आवाजें
आपातकाल से सीख लेते हुए संविधान की मर्यादा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए सदैव सजग रहें

अलीगढ़ : देश के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का समय ऐसा अध्याय है, जिसे ‘काला दौर’ कहा जाता है। इसी दौर की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर कलक्ट्रेट सभागार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मा0 जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती विजय सिंह ने की। लोकतंत्र सैनानी ज्ञानेंद्र सिंह, विजय वार्ष्णेय, देवेंद्र सक्सेना, रघुवर दयाल, चौधरी मनवीर सिंह एवं वीरपाल सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष, एमएलसी, डीएम, एडीएम, पीडी डीआरडीए, डीपीओ ने शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। गोष्ठी का संचालन नीतू सारस्वत द्वारा किया गया। श्रीमती विजय सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आपातकाल सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि चेतावनी है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए सतत जागरूकता और संघर्ष की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि आज का दिन केवल स्मरण का नहीं, बल्कि यह संकल्प लेने का दिन है कि हम सभी संविधान की मर्यादा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए सदैव सजग रहेंगे।एमएलसी डॉ0 मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि उस समय आपातकाल की परिस्थितियां क्यों पैदा हुईं, आज इस पर विचार, मनन और मंथन करने की आवश्यकता है। न्यायिक फैसला देश हित मे था परन्तु उस समय के प्रधानमंत्री के हित में नहीं था और समूचे देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया गया। आज की पीढ़ी को यह बताने की आवश्यकता है कि हमारा देश कितना महान था। इस अवसर पर गोष्ठी में प्रस्ताव पारित कर लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और यह आह्वान किया गया कि आने वाली पीढ़ियों को आपातकाल के सच से अवगत कराया जाए, ताकि लोकतंत्र कभी दोबारा उस अंधकारमय दौर से न गुजरे गोष्ठी में लोकतंत्र सैनानी विजय वार्ष्णेय ने कहा कि आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, प्रेस की आज़ादी को कुचल दिया गया था और लोकतांत्रिक संस्थानों को ठप कर दिया गया था। यह भारतीय संविधान और लोकतंत्र की आत्मा पर सीधा प्रहार था। चौधरी मनवीर सिंह ने बताया कि 12 जून 1975 को एक न्यायिक फैसला आया और 25 जून 1975 को देश मे आपातकाल लागू कर दिया गया। ज्ञानेंद्र मित्तल ने कहा कि भारत ही सबसे पुराना लोकतंत्र है हजारों राजाओं ने लोकतंत्र का पालन किया। ऐसे लोकतंत्र को एक प्रधानमंत्री ने निहित स्वार्थ के चलते देश भर को कारागार बना दियागोष्ठी में वक्ताओं ने बताया कि उन दिनों में शासन-प्रशासन का भय और उत्पीड़न इस कदर हावी था कि सामान्य नागरिक अपनी पीड़ा भी व्यक्त नहीं कर पाता था आवाज उठाने वालों को पीटा जाता था, उन्हें बगैर किसी आरोप के गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया जाता था, जहां क्रूरता की सभी हदें पार की जाती थीं। थाने यातनाओं के केंद्र बन चुके थे। गिरफ्तार लोगों के परिवारजनों को भी सूचना नहीं दी जाती थी। कई स्थानों पर जबरन नसबंदी जैसे अमानवीय कृत्य कराए गए। गोष्ठी में उस दौर में जेलों में बंद रहे लोकतंत्र रक्षकों ने जब अपनी आपबीती सुनाई तो उपस्थित जनसमूह की आंखें नम हो गईं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार महीनों तक उन्हें परिवार से मिलने नहीं दिया गया, जेलों में अमानवीय व्यवहार, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का उन्हें सामना करना पड़ा। इस दौरान सुरेंद्र शर्मा, एसआरजी संजीव शर्मा, शिक्षक रामगोपाल ने भी आपातकाल की कठिनाइयों, परेशानियों,उत्पीड़न के बारे में बड़े ही दुखी मन से साझा किया। गोष्ठी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकतंत्र रक्षक, बुद्धिजीवी, जनप्रतिनिधि, पत्रकार, शिक्षाविद, छात्र संगठन प्रतिनिधि, अधिवक्ता एवं प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे।