लोहड़ी पर क्यों सुनी जाता है दुल्ला भट्टी की कहानी
पवित्र अग्नि में मूंगफली, गुड़, तिल, मक्का डाला जाता है.
लोहड़ी का पर्व साल 2024 में 14 जनवरी, रविवार के दिन देशभर में मनाया जाएगा. लेकिन इस पर्व को पंजाब और हरियाणा में विशेष तौर से मनाया जाता है.लोहड़ी के दिन संध्या के समय अग्नि जलाई जाती है और अग्नि के चारों ओर परिक्रमा की जाती है. इस पवित्र अग्नि में मूंगफली, गुड़, तिल, मक्का डाला जाता है.इस दिन खाने और दान देने का महत्व होता है. इस दिन नाच गाने और ढोल की थाप पर थिरका जाता है और लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है. लोहड़ी मनाते समय लोहड़ी का प्रसिद्ध और लोकप्रिय गीत गाया जाता है. आइये जानते हैं लोहड़ी का प्रसिद्ध गीत दुल्ला भट्टी वाला.
सुंदर-मुंदरिए हो, तेरा कौन बेचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले ने धी ब्याही हो।
सेर शक्कर पाई-हो कुड़ी दा लाल पटाका हो।
कुड़ी दा सालू फाटा हो-सालू कौन समेटे हो।
चाचा चूरी कुट्टी हो, जमींदारा लुट्टी हो।
जमींदार सुधाए-हो, बड़े पोले आए हो
इक पोला रह गया-हो, सिपाही फड़ के लै गया हो
सिपाही ने मारी ईंट, भावें रो भावें पिट,
सानूं दे दो लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी।’
‘साडे पैरां हेठ रोड़, सानूं छेती-छेती तोर,
साडे पैरां हेठ दहीं, असीं मिलना वी नईं,
साडे पैरां हेठ परात, सानूं उत्तों पै गई रात
दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी।’
इस कहानी का अर्थ है एक ब्राह्मण की दो लड़कियां थी सुंदरी और मुंदरी के साथ इलाके का मुगल शासक जबरन शादी करना चाहता था पर उनकी सगाई कहीं और हुई थी और मुगल शासक के डर से उन लड़कियों के ससुराल वाले शादी के लिए तैयार नहीं हो पा रहे थे. इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की मदद की और लड़के वालों को मनाकर एक जंगल में आग जलाकर सुंदरी एव मुंदरी की शादी करवाई. दुल्ला भट्टी ने खुद ही उन दोनों कन्याओं का कन्यादान किया. कहावत के तौर पर माना जाता है कि दुल्ला भट्टी वाला ने शगुन के तौर में उन दोनों कन्याओं को शक्कर (Sugar) दी थी. इसी वजह से लोहड़ी की ये कहानी या ये गीत लोहड़ी के दिन या लोहड़ी के समय गाया जाता है.